यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२२१
हिन्दू विधवा

"सिक्चुअस चतुर्थ नामक पादरी और भी व्यवहार-कुशल था। केवल एक वेश्या-गृह से, जो उसने स्वयं स्थापित किया था, उसे २०,००० मुहरों की आय प्राप्त होती थी।"

रूसी और अमरीकन क्रान्तिकारी तथा स्त्रियों के पक्षपाती एक्मा गोल्ड मैन ने अपनी एक पुस्तक*[१] में सैङ्गर के उपरोक्त दोनों वाक्यों को उद्धृत करके अपनी टिप्पणी इस प्रकार दी है:–

"आधुनिक काल में इस दिशा की ओर गिरजाघर कुछ अधिक सावधानी से काम करता है। कम से कम वह वेश्याओं से खुल्लमखुल्ला दान नहीं माँगता। पर वह ट्रिविटी चर्च की भाँति व्यापार करना अधिक लाभकर समझता है। जो लोग वेश्यावृत्ति के द्वारा जीवन व्यतीत करते हैं उन्हें बड़े महँगे दामों में मृत्यु-शय्या किराये पर देना, इसका एक उदाहरण है।"

इस बुरी से बुरी स्थिति में भी दक्षिण भारत की देवदासी वेश्यायें योरप और अमरीका की इसी श्रेणी की वेश्याओं से बुरी नहीं हैं और न उनसे अच्छी ही हैं। एक उप-महाद्वीप में, जिसमें ३१,५०,००,००० आत्माएँ निवास करती हैं, देवदासी के समान सूक्ष्मदर्शक यन्त्र से देखे जाने योग्य एक जाति की उपस्थिति से सम्पूर्ण राष्ट्र के धर्माचरण पर आक्षेप करना न्याय कदापि नहीं कहा जा सकता।

सुधार-समितियाँ इस कुत्सित प्रथा के मिटाने के उद्योग में लगी हुई हैं। विश्वास के साथ यह आशा की जा सकती है कि यदि सरकार इसकी रक्षा करने के लिए हथियार न उठावे तो मदरास कौंसिल के निर्वाचित सदस्य इसे अधिक समय तक जीवित न रहने देंगे। मिस मेयो लिखती है, 'अब यदि यह पूछा जाय कि एक उत्तरदायी शासन ऐसी प्रथा को क्यों जारी रहने देता है तो उत्तर खोजने के लिए दूर न जाना पड़ेगा।' वह कहती है कि


  1. * क्रान्ति और अन्य निबन्ध (अनारकिज़्म एण्ड अदर ऐसेज़) पृष्ठ १८९