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स्त्रियाँ और नवयुग


कि सब प्रकार की बुराइयाँ स्त्री से ही उत्पन्न होती हैं। सेंट आगस्टिन का तर्क यह था कि पुरुष ने तो परमात्मा की आकृति पाई है परन्तु स्त्री ऐसी नहीं है। वह कहता है कि 'स्त्री को अपने पति पर शासन करने की आज्ञा नहीं है। वह साक्षी नहीं दे सकती, जमानत नहीं कर सकती और न कचहरी का कार्य्य कर सकती है*[१]। पितागण इस बात पर अधिक ज़ोर देते हैं कि बेटियों अपनी माता-पिता की आज्ञा के विरुद्ध जो विवाह करती हैं, वह विवाह नहीं व्यभिचार है।

जर्मन लोगों में विवाह सदैव संरक्षण-द्वारा शासित होता था। जातिभेद भी बहुत प्रबल था। स्त्रियों को अपनी स्थिति से निम्नअवस्था में विवाह करना पड़ता था†[२]। और वे कभी स्वतन्त्र नहीं होने पाती थीं। वहीं के 'पवित्र धर्म-शास्त्रों के अनुसार' विवाह करते ही स्त्री पति के अधीन हो जाती थी। और इस प्रकार पति उसकी समस्त सम्पत्ति का भी स्वामी बन बैठता था।‡[३]

इंगलेंड के सम्बन्ध में १७६३ ईसवी में ब्लैकस्टोन ने लिखा था:-

'प्राचीन कानून के अनुसार पति भी अपनी स्त्री को साधारण दण्ड दे सकता है। उसके बुरे वर्ताव के लिए पति को भी उत्तर देना पड़ता है इसलिए कानून ने यह उचित समझा कि उसे स्त्री को गृह-सम्बन्धी दण्डों द्वारा, कठोर परिश्रम-द्वारा, या बच्चों के द्वारा ऐसे व्यवहारों से रोकने का अधिकार दिया जाय जिनके लिए गृह-स्वामी या माता-पिता को भी कतिपय अवस्थाओं में उत्तरदायी होना पड़ता है§[४]।......"

यह उस समय के आसपास की बात है जब एबे हुबोइस हिन्दुओं की सामाजिक प्रथाओं में अपनी निन्दास्पद खोज करने में लगा था। ब्लैकस्टोन ने इसी क्रम में आगे कहा है:-

  1. * उसी पुस्तक से, पृष्ठ ५८, ५९।
  2. † उसी पुस्तक से, पृ॰ ७९ और आगे।
  3. ‡ उसी पुस्तक से, पृष्ट ८५।
  4. § मिस हेकर द्वारा उद्धृत। उसी पुस्तक से, पृष्ट १२५।