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दुखी भारत

एक अमरीकन ईसाई प्रचारक ने रबर के 'मानवीय' पहलू पर जो टिप्पणी की थी और जिसे मारले*[१] ने उद्धृत किया था वह नीचे दी जाती है:-

"उनको (सैनिकों को) वध किये गये लोगों के हाथों के साथ लौटते हुए देखकर रक्त शुष्क पड़ जाता है। और उनके बड़े हाथों में नन्हें बालकों के कटे हाथ देखकर उनकी बहादुरी का पता चल जाता है......। इस जिले से जो रबर जाता है उसने सैकड़ों प्राण लिये हैं। और मैंने दुःखी लोगों की सहायता करने की अपनी असमर्थ अवस्था में जो दृश्य देखे उनके कारण मेरे हृदय में यह इच्छा उठने लगी कि मैं यह दृश्य देखने से पहले मर गया होता तो अच्छा होता।......यह रबर का व्यापार रक्त से सना हुआ है। यदि अफ्रीका के ये श्रादि-निवासी उठ खड़े हो और ऊपरी कांगो से प्रत्येक गोरे को सुरधाम पहुँचा दें तो भी उनके यश में एक भयङ्कर कमी शेष रह जायगी।"

यह बात बेलजियन कांगो के सम्बन्ध में लिखी गई है। परन्तु फ्रांसीसी कांगो भी इससे अच्छा नहीं था। १९०८ ईसवी में एक अमरीकन ईसाई धर्म-प्रचारक ने निम्नलिखित बात नोट की थी:-

"फ़्रांसीसी कांगो की जो नष्टप्राय दशा है उसका अपराधी किसे ठहराया। जाय? व्यापार मर गया है, जो नगर हरे भरे थे और उन्नति पर थे वे आज उजाड़ हो रहे हैं, और समस्त जङ्गली जातियाँ केवल थोड़े से व्यक्तियों की अनाचार-वृत्ति के लिए व्यर्थ में निर्दयता के साथ पीसी जा रही हैं...। नगर घेरे जाते हैं और लूटे जाते हैं। पिता, भाई और पति दुर्गन्धि से भरे कारागारों में बन्द कर दिये जाते हैं और जब तक घर के शेष लोग आवश्यक कर इकट्ठा करके चुका नहीं देते तब तक वे छोड़े नहीं जाते। फ्रांस ने ठीकेदारों को पूर्ण अधिकार दे रक्खा है। वे अपनी स्वीकृत भूमि पर अपना पूरा स्वत्व समझते हैं।......उद्योग-पूर्ण और उन्नतशील स्वतंत्रता के जीवन से किसी सभ्य देश को भी आलस्य और विवशतापूर्ण दीनता के जीवन में गिरा दिया जाय तो वह सर्वथा ही पतित हो जायगा। जङ्गली जातियों के साथ फिर इसका परिणाम क्या न होगा? फ्रांसीसियों के ही कहने के अनुसार समस्त देश अव्यवस्थित होगया है, अर्थात् उलट गया है, घबड़ा गया है, प्रशान्त हो उठा है, उत्तेजित हो उठा है और उजड़ गया है। और अपने कुकृत्यों के परिणामों का इस प्रकार वर्णन करने में फ्रांसीसी सत्य मार्ग पर हैं।


  1. * उसी पुस्तक से पृष्ट १२१-२