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दुखी भारत


इसलिए उपस्थित हो गई कि पूर्वी सेंट लुइस के धन-पतियों ने हड़ताल कर बैठनेवाले गोरे मजदूरों के स्थान पर काम करने के लिए दक्षिण से हबशी मज़दूरों को एक बड़ी संख्या में बुला लिया था। इस पर गोरे मजदूरों ने कानून को अपने हाथ में ले लिया और ढूँढ़ ढूँढ़ कर हबशी स्त्रियों, बच्चों, बुड्ढों का वध करना आरम्भ कर दिया। किसी को नहीं छोड़ा। हबशियों के घरों में आग लगा दी। जिनमें, अधिकांश में भीतर के लोग भीतर ही जलकर राख हो गये। गोरों के समाचार-पत्रों ने भी यह स्वीकार किया है कि गोरी पुलिस या तो चुपचाप तमाशा देखती थी या गार आततायियों की सहायता करती थी। सेंट लुइस स्टार नामक पत्र में निम्नलिखित वर्णन छपा था। इससे पुलिस और अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित नागरिकों के व्यवहार पर अच्छा प्रकाश पड़ता है:-

"इस नर-हत्या में नागरिक सेना के कुछ सैनिक भी योग दे रहे थे। 'लोनली' की एल॰ सेना के दो सैनिकों के सम्बन्ध में मिस ग्रूनिंग ने अपना वक्तव्य प्रकाशित कराया है। बलवे के कुछ दिन पश्चात् कैबोकिया नदी के निकट वे उनके पास से जब निकली तक उनसे और उनमें कुछ बातें हुई। वे दोनों डींग मार रहे थे कि यहाँ ७ हबशी नदी में फेंक दिये गये थे और जब जब वे बाहर निकलने का यत्न करते थे लोग उन पर पत्थर फेंकते थे। यहीं तक कि वे डूबकर मर गये।......मिस ग्रूनिंग ने पूछा-'और बहादुरो तुमने कितने हबशियों का वध किया? इसका उन्होंने कोई निश्चय नहीं किया था। वे ठीक ठीक यह नहीं बता सकते थे कि कितने? परन्तु यह बात तो निश्चित धी कि गोली वे मारने ही के लिए चलाते थे। उनका यही आज्ञा मिली थी। मिस ग्रूनिंग ने पूछा-'क्या हबशियों को मारने की आज्ञा?' उन्होंने आनन्द के साथ मुस्करा कर उत्तर दिया-'ओह नहीं। केवल उनको मारने की आज्ञा मिली थी जो आग लगा रहे थे। 'और क्या तुमने किसी हबशी को श्राग लगाते देखा था?' 'नहीं. हम लोगों ने जो कुछ देखा वह इतना ही था कि हबशी भाग रहे हैं।"

मिस ग्रूनिंग में इस बात की जाँच करने के लिए सेना-विभाग को लिखा। और कहा कि मैं उन सैनिकों को पहचान लूँगी। सेना-विभाग ने टालमटूल कर दिया।