होते ही उसका अन्त भी हो जायगा। पृथ्वी पर की सब गोरी जातियों ने भारत की राजनैतिक स्वाधीनता के विरुद्ध जो अपवित्र एका किया है उसके पीछे यही भय काम कर रहा है। भारत ही काले गोरे आदि वर्णों की समस्या को जटिल बनाये हुए है। भारत की स्वतंत्रता से संसार की वे सब जातियाँ स्वतंत्र हो जायँगी जो सफेद नहीं हैं। इससे कुमारी कैथरिन मेयो की पुस्तक 'मदर इण्डिया' के तमाम योरोप में ख्याति और सफलता प्राप्त करने का कारण स्पष्ट हो जाता है।
मिस मेयो का मनोभाव एशिया की काली, भूरी और पीली सभी जातियों के विरुद्ध योरोप की गोरी जातियों का ही मनोभाव है। पूरब को दबाने-वालों के मुँह की वह पिपहरी मात्र है। पूर्व की जाग्रति ने योरोप और अमरीका दोनों को भयभीत कर दिया है। इसी से इतनी प्राचीन और इतनी सभ्य जाति के विरुद्ध इस पागलपने का प्रदर्शन हो रहा है और ख़ूब अध्ययन के साथ तथा जानबूझ कर यह झूठा आन्दोलन खड़ा किया गया है।
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मिस कैथरिन मेयो, जैसा कि उसके लेखों से जान पड़ता है, अमरीका की जिङ्गो जाति का एक औज़ार है। वह पत्रकार है। ग्रन्थकार होने का उसका दावा केवल इतना ही है कि उसकी लेखन-शैली मनोरञ्जक है, सनसनी पैदा करनेवाले उड़ते हुए शब्दों का प्रयोग करना उसे आता है और सन्देहपूर्ण कथाओं को बड़ी मनोरञ्जक भाषा में लिखने का उसे अभ्यास है। एक मामूली पाठक भी इतिहास, मनःशास्त्र और राज-नीति-विज्ञान में उसकी अज्ञानता को दिखला सकता है। फिर भी वह विविध विषयों की अच्छी लेखिका है। ग्रन्थकारों में पहले पहल उसकी गणना एक पुस्तक के से हुई जिसमें उसने अपनी वादा की हुई स्वतन्त्रता के लिए अमरीका का लगातार दरवाज़ा खटखटानेवाले फ़िलीफाइन-निवासियों के सम्बन्ध में अपनी 'खोजों' का वर्णन किया था। पुस्तक का नाम रखा गया 'भय के