यह पृष्ठ प्रमाणित है।
सातवाँ अध्याय
'शिक्षा क्यों नहीं दी जाती?

मिस मेयो ने स्वयं भारत-सरकार के काग़जों में लिखी हुई इन सब बातों की उपेक्षा की है। पैसा बटोरनेवाले लेखक गम्भीर और सत्य विषयों को नहीं उपस्थित कर सकते। ऐसे लेखक भारतीयों की विषय-वासना को खींच-खाँच कर प्रत्येक बात के साथ जोड़ने का मदर इंडिया का ही ढङ्ग अधिक सुगम समझते हैं। अपनी पुस्तक के 'शिक्षा क्यों नहीं दी जाती?' शीर्षक अध्याय में उसने भारतवर्ष में चारों तरफ़ फैली निरक्षरता का कारण बताने की चेष्टा की है। वह हमें बतलाती है कि बिना अध्यापिकाओं के गाँवों में शिक्षा का प्रबन्ध नहीं किया जा सकता। और अध्यापिकाएँ गाँवों में जाती नहीं क्योंकि 'सन्तानोत्पत्ति की अवस्थावाली स्त्रियाँ बिना विशेष संरक्षण के भारतीय पुरुषों की पहुँच में जाने का साहस नहीं कर सकतीं[१]।' भारतीय राष्ट्र पर यह दुष्टतापूर्ण दोषारोपण सर्वथा निराधार है। सदाचार में औसत दर्जे का भारतीय ग्रामीण अमरीका और योरप के लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक संयमशील, दृढ़व्रती और उच्च होता है। मनुष्यों से बसे लगभग आधे संसार का अनुभव करने के पश्चात् मैं यह कह रहा हूँ। मिस मेयो ने अपने पक्ष का समर्थन करने के लिए कलकत्ता-विश्वविद्यालय के जाँच कमीशन के विवरण से एक वाक्य उद्धृत किया है। अपने प्रकरण में मिस मेयो ने उस वाक्य को स्वयं कमीशन की सम्मति[२] बतलाया है परन्तु सच बात यह है कि वह वाक्य कमीशन की निजी राय नहीं, उसके अन्य स्थान से लिये गये उद्धरण का एक


  1. मदर इंडिया, पृष्ठ १८६
  2. "कलकत्ता-विश्वविद्यालय के जाँच कमीशन ने इस सम्बन्ध में अपनी सम्मति इस प्रकार प्रकट की थी—जब तक बङ्गाली लोग पर्दे में न रहनेवाली स्त्रियों के प्रति आदर प्रदर्शित करना नहीं सीख लेते तब तक अध्यापिकाओं का मिलना असम्भव होगा। इस कठिनाई का हमें सामना करना चाहिए।" मदर इंडिया पृष्ठ १