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शिक्षा और द्रव्योपार्जन


सार्वजनिक स्कूल अत्यन्त न्यून और अपूर्ण हैं, धन और बल में इतनी शीघ्रता के साथ आगे निकल गया। यह बात प्रायः सभी मानते हैं कि जर्मनी की यह आश्चर्यजनक सफलता उसकी उत्तम शिक्षण-पद्धति का प्रत्यक्ष फल है।"

अमरीका के सम्बन्ध में वे बतलाते हैं:—

"शिक्षा का उत्पादनशक्ति के साथ क्या सम्बन्ध है इसका पता इस बात से चल जाता है कि जब से संयुक्तराष्ट्र में शिक्षा का प्रचार हुश्रा है तब से उसकी उत्पादन-शक्ति में भी सर्वत्र बहुत बड़ी वृद्धि हो गई है। अमरीका में १४९२ से १८६० तक अर्थात् ३६४ वर्षों में जो सम्पत्ति एकत्रित की गई थी उसका औसत ५१४ शिलिङ्ग प्रति मनुष्य था। तब से १९०४ तक में अर्थात् केवल ४४ वर्षों में ही यह औसत बढ़कर १,३१८ शिलिङ्ग प्रति मनुष्य हो गया। या यह कि ४४ वर्षों में ८०४ शिलिङ्ग प्रति मनुष्य के हिसाब से वृद्धि हुई....।

"उसके बाद से यह वृद्धि और भी अधिक आश्चर्य-जनक हुई है। यह वृद्धि कुछ तो वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाने से, या डालर की क्रय-शक्ति घट जाने से, और कुछ एकत्रित धन के प्रयोग तथा कतिपय अन्य कारणों से हुई है। पर इन सब बातों का समुचित ध्यान रखने पर भी इस परिणाम पर आना ही पड़ता है कि राष्ट्र की शिक्षण-पद्धति नागरिकों की उत्पादन-शक्ति की इस महान् वृद्धि का एक बहुत बड़ा कारण है। अशिक्षित देशों की उत्पादन-शक्ति इस प्रकार नहीं बढ़ रही है।"

डाक्टर केसवेल एलिस का यह विचार सर्वथा सत्य है कि शिक्षा के बिना प्राकृतिक साधन किसी काम के नहीं होते। इस बात से केवल भारत-सरकार सहमत नहीं है कि भारतवासियों की भयङ्कर दीनता अधिकांश में उनकी अज्ञानता और निरक्षरता के कारण है। और शोचनीय अज्ञानता और निरक्षरता का उत्तरदायित्व एक-मात्र ब्रिटिश सरकार पर है। भारत-सरकार ने यह कभी नहीं सोचा कि—

"एक निरक्षर जाति की योग्यता एक शिक्षित राष्ट्र की प्रतिद्वन्द्विता में वैसी ही है जैसा पहियेदार हल के विरुद्ध टेढ़ा पुराने ढङ्ग की लकड़ी का हल, फसल काटने की मशीन के विरुद्ध हँसिया; एक्सप्रेस ट्रेन, जहाज़ या वायुयान के विरुद्ध बैलगाड़ी; तार, टेलीफ़ोन और बेतार के