पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

शर्मिन्दः रखते हैं मुझे बाद-ए-बहार से
मीना-ए-बे शराब-ओ-दिल-ए-बे हवा-ए-गुल

सतवत से तेरे जल्वः-ए-हुस्न-ए-ग़यूर की
ख़ूँ है मिरी निगाह में रँग-ए-अदा-ए-गुल

तेरे ही जल्वे का है यह धोका, कि आज तक
बे इख़्तियार दौड़े है गुल दर क़फ़ा-ए-गुल

ग़ालिब, मुझे है उससे हम आग़ोशी आरज़ू
जिसका ख़याल है गुल-ए-जैब-ए-क़बा-ए-गुल

८२


ग़म नहीं होता है आज़ादों को, बेश अज़ यक नफ़स
बर्क़ से करते हैं रौशन, शम्'अ-ए-मातम खानः हम

मह्फ़िलें बरहम करे है, गँजफ़: बाज़-ए-ख़याल
हैं वरक़ गर्दानि-ए-नैरँग-ए-यक बुतखान: हम

बावुजूद-ए-यक जहाँ, हँगामः पैदाई नहीं
हैं चराग़ान-ए-शबिस्तान-ए-दिल-ए-परवानः हम

ज़ो'फ़ से है, ने क़ना'अत से, यह तर्क-ए-जुस्तुजू
हैं वबाल-ए-तक्यः गाह-ए-हिम्मत-ए-मर्दानः हम