पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/८९

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गर तुझको है यक़ीन-ए-इजाबत, दु'श्रा न माँग यानी बिगैर-ए-यक दिल-ए-बेमुद्दा , न माँग आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद मुझसे मिरे गुनह का हिसाब, अय खुदा न माँग है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल बुलबुल के कार-ो-बार प हैं ख़न्दःहा-ए-गुल आज़ादि-ए-नसीम मुबारक, कि हर तरफ़ टूटे पड़े हैं हल्क:-ए-दाम-ए-हवा-ए-गुल जो था, सो मौज-ए-रंग के धोके में रह गया अय वाये, नाल:-ए-लब-ए-खूनी नवा-ए-गुल खुश हाल उस हरीफ़-ए-सियह मस्त का, कि जो रखता हो मिस्ल-ए-सायः-ए-गुल, सर ब पा-ए-गुल ईजाद करती है उसे तेरे लिये, बहार मेरा रक़ीब है, नफ़स-ए - 'भित्र सा-ए-गुल