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फारिग़ मुझे न जान, कि मानिन्द-ए-सुब्ह-ओ-मेह्र
है दाग़-ए-'अिश्क़, ज़ीनत-ए-जैब-ए-कफ़न हनोज़
है नाज़-ए-मुफ़्लिसाँ ज़र-ए-अज़दस्त रफ़्तः पर
हूँ गुल फ़रोश-ए-शोखि-ए-दाग़-ए-कुहन हनोज़
मैख़ान:-ए-जिगर में यहाँ ख़ाक भी नहीं
खमियाज़ा खेचे है बुत-ए-बेदाद फ़न हनोज़
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हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं, फ़ुसून-ए-नियाज़
दु'आ क़ुबूल हो यारब, कि 'अम्र-ए-ख़िज़्र दराज़
न हो बहरज़ बयाबाँ नवर्द-ए-वहम-ए-वुजूद
हनोज़ तेरे तसव्वुर में है नशेब-ओ-फ़राज़
विसाल जल्वः तमाशा है, पर दिमाग़ कहाँ
कि दीजे आईन:-ए-इन्तिज़ार को परवाज़
हर एक ज़र्रः-ए-'आशिक़ है आफ़्ताब परस्त
गई न ख़ाक हुये पर, हवा-ए-जल्व:-ए-नाज़