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अफ़सोस, कि दन्दाँ का किया रिज्क़; फ़लक ने
जिन लोगों की थी, दर्ख़ुर-ए-'अक़्द-ए-गुहर, अँगुश्त
काफ़ी है निशानी तिरी, छल्ले का न देना
ख़ाली मुझे दिखला के, बवक़्त-ए-सफ़र, अँगुश्त
लिखता हूँ, असद, सोज़िश-ए-दिल से, सुख़न-ए-गर्म
ता रख न सके कोई मिरे हर्फ़ पर अँगुश्त
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रहा गर कोई ता क़यामत, सलामत
फिर इक रोज़ मरना है, हज़रत सलामत
जिगर को मिरे 'अिश्क़-ए-ख़ूनाबः मशरब
लिखे है ख़ुदावन्द-ए-ने'मत सलामत
'अलर्र ग़म-ए-दुश्मन, शहीद-ए-वफ़ा हूँ
मुबारक मुबारक, सलामत सलामत
नहीं गर सर-ओ-बर्ग-ए-इदराक-ए-मा'नी
तमाशा-ए-नैरँग-ए-सूरत, सलामत