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दिल से मिटना तिरी अँगुश्त-ए-हिनाई का ख़्याल
हो गया, गोश्त से नाखुन का जुदा हो जाना

है मुझे, अब्र-ए-बहारी का बरस कर खुलना
रोते रोते ग़म-ए-फुर्क़त में, फ़ना हो जाना

गर नहीं नक्हत-ए-गुल को तिरे कूचे की हवस
क्यों है, गर्द-ए-रह-ए-जौलान-ए-सबा हो जाना

ताकि तुझ पर खुले ए'जाज़-ए-हवा-ए-सैक़्ल
देख बरसात में सब्ज़ आइने का हो जाना

बख्शे है जल्व:-ए-गुल जौक़-ए-तमाशा; गालिब
चश्म को चाहिये हर रँग में वा हो जाना

५०


फिर हुआ वक़्त, कि हो बाल कुशा मौज-ए-शराब
दे बत-ए-मै को दिल-ओ-दस्त-ए-शना मौज-ए-शराब

पूछ मत, वज्ह-ए-सियह मस्ति-ए-अर्बाब-ए-चमन
साय:-ए-ताक में होती है हवा, मौज-ए-शराब

जो हुआ ग़र्क़:-ए-मै, बख्त-ए-रसा रखता है
सर से गुज़रे प भी, है बाल-ए-हुमा , मौज-ए-शराब