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लताफ़त बेकसाफ़त जल्वः पैदा कर नहीं सकती
चमन जंगार है आईन:-ए-बाद-ए-बहारी का
हरीफ़-ए-जोशिश-ए-दरिया नहीं; ख़ुद्दारि-ए-साहिल
जहाँ साक़ी हो तू, बातिल है दा'वा होशियारी का
४९
'अश्रत-ए-क़तरः है, दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना, है दवा हो जाना
तुझसे, किस्मत में मिरी, सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद
था लिखा, बात के बनते ही, जुदा हो जाना
दिल हुआ कशमकश-ए-चार:-ए-ज़हमत में तमाम
मिट गया घिसने में इस 'अक़्दे का वा हो जाना
अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम, अल्लह अल्लाह
इस कदर दुश्मन-ए-अर्बाब-ए-वफ़ा हो जाना
ज़ो'फ़ से, गिरियः मुबद्दल बदम-ए-सर्द हुआ
बावर आया हमें पानी का हवा हो जाना