पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/५०

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दिल उसको, पहले ही नाज़-ओ-अदा से, देबैठे हमें दिमाग़ कहाँ, हुस्न के तकाजा का न कह, कि गिरियः बमिक्दार-ए-हसरत-ए-दिल है मिरी निगाह में है जम'-ओ-ख़र्च दरिया का फलक को देख के, करता हूँ उसको याद, असद जफ़ा में उसकी, है अन्दाज़ कारफ़रमा का २९ कतरः-ए-मै, बसकि हैरत से नफ़स परवर हुआ ख़त्त-ए-जाम-ए-मै सरासर, रिश्त:-ए-गौहर हुआ ए तिबार - ए- 'अिश्क की ख़ान: ख़राबी देखना रौर ने की आह, लेकिन वह खफ़ा मुझपर हुया जब, बतक़रीब-ए-सफ़र , यार ने महमिल बाँधा तपिश-ए-शौक़ ने हर ज़र्रे प इक दिल बाँधा अहल-ए-बीनश ने बहैरत कदः- ए-शोख़ि-ए-नाज़ जौहर-ए-आइनः को तूति-ए-बिस्मिल बाँधा