पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/५

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शा 'अिरी देखकर कहा था कि कोई योग्य उस्ताद मिल गया तो अच्छा शाअिर बन जायगा नही तो निरर्थक बकने लगेगा। एक ईरानी मुल्ला अब्दुस्समद के सिवाय, ( जिसका अस्तित्व संदिग्ध है) जीवन के अनुभव ही ग्रालिब के उस्ताद रहे। गालिब की प्रारम्भिक कठिन और उलझी हुई शा अिरी पर, जिसके कुछ नमूने प्रस्तुत दीवान में भी बाकी रह गये है, जब आगरे वाले हसे तो गालिब के अहं ने उसकी कोई परवाह नहीं की। लेकिन शादी के बाढ दिल्ली-निवास के दौरान में बड़े-बड़े विद्वानो और माने हुए कला-मर्मज्ञो के सम्पर्क में आने के बाद गालिब उनकी राय की उपेक्षा न कर सका और पच्चीस वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुंचते रुचि सही शेर की तरफ प्रवृत्त होगई। अपनी जागीर और पेन्शन के सिलसिले में गालिब को तीस वर्ष की आयु में (सन् १८२७ ई.) कलकत्ते की जो यात्रा करनी पड़ी वह उसके जीवन का बहुत बडा मोड है। वहाँ उसने केवल नये जीवन की झलकियाँ ही नही देखी बल्कि अपनी असफलता के आइने मे अपना मुँह भी देखा। इस प्रकार गालिब ने मुग़ल संस्कृति की आखरी बहार और नई प्रौद्योगिक संस्कृति के उभरते हुए चिन्ह और उनकी कैफियतो को अपने व्यक्तित्व में समो लिया।

लेकिन इन सब से बडी घटना जीवन भर की निर्धनता है जिसने गालिब को हमेशा बेचैन और व्याकुल रखा। अब न तो पूर्वजो की प्रतिष्ठा और वैभव बाकी था जिनके संबंध प्राचीन ईरानी बादशाहो से मिलते थे, और न बू अली सीना की विद्या सीने मे थी। इसलिए गालिब ने अपने क़लम को 'अलम (ध्वजा) बना लिया और पूर्वजो के टूटी हुई बर्छियो को कलम (फारसी से)। जिन्दगी ने गालिब के साथ कुछ अच्छा व्यवहार नही किया और हमेशा उसकी रूह में रेगजार (मरुस्थल) ही उँडेले। लेकिन गालिब की आत्मा ने जीवन को लाल:जार (पुष्पोद्यान) प्रदान किये। उसके स्वभाव की यह उदारता उर्दू भाषा और साहित्य को मालामाल कर गई।

यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि ग़ालिब के सामने विश्व और जीवन के बारे में कोई दृष्टिकोण था या नही। वह किसी दर्शन विशेष का निर्माता नहीं है इस लिए उसके यहाँ व्यवस्थित विचार और सन्देश की खोज व्यर्थ होगी। लेकिन गालिब की शा अिरी में चिन्तन के तत्व और दार्शनिक प्रवृत्ति से इनकार नही किया जा सकता। इसलिए रस्मी विचारो और गजल के परम्परागत विषयो की पैदा की हुई विपरीतता के बावुजूद विश्व और मानव के सम्बन्ध मे गालिब की व्यापक प्रवृत्ति का अनुमान लगाना दिलचस्पी से खाली नहीं है।

इसमें कोई संदेह नही कि उर्दू का यह महान कवि प्राचीन सूफियाना विचारों से प्रभावित था जो उसको अपने अध्य्यन के अलावा फारसी और