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फ़ायद: क्या, सोच, आख़िर तू भी दाना है, असद
दोस्ती नादाँ की है, जी का जियाँ हो जायगा
२७
दर्द मिन्नत कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ
जम'अ करते हो क्यों रक़ीबों को
इक तमाशा हुआ, गिला न हुआ
हम कहाँ क़िस्मत आज़माने जायें
तू ही जब खजर आज़मा न हुआ
कितने शीरीं हैं तेरे लब, कि रक़ीब
गालियाँ खा के बेमज़ा न हुआ
है ख़बर गर्म उनके आने की
आज ही, घर में बोरिया न हुआ
क्या वह नमरूद की ख़ुदाई थी
बन्दगी में भिरा भला न हुआ
जान दी, दी हुई उसी की थी
हक़ तो यह है, कि हक़ अदा न हुआ