पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/३७

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फ़र्श से ता 'अर्श, वाँ तूफ़ाँ था मौज-ए-रंग का
याँ ज़मीं से आस्माँ तक सोखतन का बाब था

नागहाँ, इस रंग से ख़ूँनाबः टपकाने लगा,
दिल, कि जौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन से लज्ज़तयाब था

१६


नालः-ए-दिल में शब, अन्दाज-ए-असर नायाब था
था सिपन्द-ए-बज़्म-ए-वस्ल-ए-ग़ैर, गो बेताब था

मक़दम-ए-सैलाब से, दिल क्या निशात आहंग है,
ख़ानः-ए-'आशिक़, मगर, साज़-ए-सदा-ए-आब था

नाजिश-ए-अय्याम-ए-ख़ाकिस्तर नशीनी, क्या कहूँ,
पहलु-ए-अन्देशः, वक़्फ-ए-बिस्तर-ए-संजाब था

कुछ न की, अपने जुनून-ए-नारसा ने, वर्न: याँ
ज़र्रः ज़र्र:, रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-'आलम ताब था

आज क्यों परवा नहीं, अपने असीरों की तुझे
कल तलक, तेरा भी दिल मेह्र-ओ-वफा का बाब था

याद कर वह दिन, कि हर इक हल्क़ः तेरे दाम का
इन्तिज़ार-ए-सैद में, इक दीद:-ए-बेख़्वाब था