पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२३०

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है ज़ौक़-ए-गिरियः, 'अज़्म-ए-सफ़र कीजिये, असद
रख़्त-ए-जुनून-ए-सैल ब वीरानः खेंचिये

३९


ख़ुद नामः बन के जाइये, उस आश्ना के पास
क्या फायदः कि मिन्नत-ए-बेगानः खेंचिये

४०


जाम-ए-हर ज़र्रः, है सार-ए-तमन्ना मुझसे
किसका दिल हूँ, कि दो 'आलम से लगाया है मुझे

४१


गदा-ए-ताक़त-ए-तकरीर है ज़बाँ तुझ से
कि ख़ामुशी को है पैराय:-ए-बयाँ तुझ से

फ़सुर्दगी में है फ़रियाद-ए-बेदिलाँ तुझ से
चराग़ः-ए-सुबह-ओ-गुल-ए-मौसम-ए-ख़ज़ाँ तुझ से

बहार-ए-हैरत-ए-नज्जारः, सख़्त जानी से
हिना-ए-पा-ए-अजल ख़ून-ए-कुश्तगाँ तुझसे