पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२२७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७ है यास में असद को सानी से भी फ़रारात दरिया से ख़ुश्क गुजरे मस्तों की तश्नःकामी २८ गर मुसीबत थी, तो गुर्बत में उठा लेते, असद मेरी देहली ही में होनी थी यह ख्वारी, हाय हाय बे चश्म-ए-दिल न कर हवस-ए-सैर-ए-लालःज़ार यानी यह हर वरक, वरक़-ए-इन्तिख़ाब है ता चन्द पस्त फ़ितरति-ए-तब-ए-आरजू यारब, मिले बलन्दि-ए-दस्त-ए-दु'श्रा मुझे यक बार इम्तिहान-ए-हवस भी जरूर है अय जोश-ए-'अिश्क, बादः-ए-मर्द आज़मा मुझे