पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२२४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१७

ख़ुद परस्ती से रहे बाहम दिगर, ना आश्ना
बेकसी मेरी शरीक, आईनः तेरा आश्ना

रब्त-ए-यक शीराज:-ए-वह्शत हैं अज्ज़ा-ए-बहार
सब्ज़: बेगानः, सबा आवारः, गुल ना आश्ना

१८



फिर वह सू-ए-चमन आता है, ख़ुदा ख़ैर करे
रँग उड़ता है गुलिस्ताँ के हवादारों का

१९



अज़ आँजा कि हस्रत कश-ए-यार हैं हम
रक़ीब-ए-तमन्ना-ए-दीदार हैं हम

तमाशा-ए-गुल्शन, तमन्ना-ए-चीदन
बहार आफ़रीना, गुनहगार हैं हम

न ज़ौक़-ए-गरीबाँ, न परवा-ए-दामाँ
निगह प्राश्ना-ए-गुल-ओ-ख़ार हैं हम