पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२१

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के मु'आमले में विरोध किया है। उदाहरण के लिये मालिक राम के यहाँ और कुछ दूसरे संस्करणों में "जोश-ए-कदह से बज्म-ए-चराग़ाँ किये हुये" लिखा है। मैंने बज्म की इज़ाफ़त बाकी नहीं रखी। इसी तरह "चश्म-ए-दल्लाल जिन्स-ए-रुस्वाई" के बजाय मैंने 'चश्म, दल्लाल-ए-जिन्स-ए-रुस्वाई' लिखा है। लेकिन यह बात केवल चन्द शे'रो तक सीमित है।

उच्चारण का प्रश्न भी महत्वपूर्ण है। विदेशी भाषाओं के चन्द शब्द उर्दू भाषा में आकर बिगड़ चुके हैं। चूँँकि इस तरह वह उर्दू के शब्द बन गये हैं इसलिए मैं साधारणतः बोलचाल के उच्चारण (तद‍्भव) को मूल फ़ारसी या 'अरबी उच्चारण (तत्सम) पर प्रधानता देता हूँ। यही कारण है कि मैंने सुवाल को सवाल, गिरिफ़्तार को गिरफ़्तार और निश्तर को नश्तर लिखा है। ऐसे शब्दों में भी जिनके दो उच्चारण हैं, मैंने बोलचाल के उच्चारण को बेहतर समझा है। इसकी कसौटी मेरा निजी ज्ञान है। इसलिये 'अज्ज़ पर 'अिज्ज़ को और सिताइश पर सताइश को प्रधानता दी है लेकिन इतनी सावधानी बरती है कि हिन्दी शब्दावली में कोष्ठक के अन्दर दूसरा उच्चारण भी लिख दिया है। मैंने कुछ शब्द जैसे ख़जाँ, चराग़ और नशात को नहीं बदला है लेकिन मेरा विचार है कि उर्दू में ख़िज़ाँ, चिराग़ और निशात प्रचलित है और उनका इसी तरह प्रयोग करना चाहिये। यह दूसरा प्रश्न है कि स्वयं ग़ालिब ने क्या उच्चारण किया। जब तक इसकी छानबीन न की जाय उस समय तक हम निजी रुचि की कसौटी का प्रयोग करने पर बाध्य हैं।

नागरी लिपि में उर्दू काव्य और साहित्य का एक बड़ा भाग प्रकाशित हो चुका है। लेकिन उर्दू को नागरी लिपि में परिवर्तित करने के प्रश्न पर पूरी तरह विचार नहीं किया गया। प्रारम्भ में यह असावधानी स्वाभाविक थी, लेकिन अब, जबकि हिन्दी हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा बन चुकी है और उसको देवनागरी लिपि द्वारा हिन्दुस्तान की विभिन्न भाषाओं की पूँजी को अपने दामन में समेटना है तो यह आवश्यक है कि लिपि के प्रश्नों पर साहित्यिक और वैज्ञानिक रूप से विचार किया जाय और दूसरी भाषाओं की आवाज़ों को व्यक्त करने के लिये नयी 'अलामते और संकेत अपनाये जाये। यह जीवित भाषाओं की विशेषता है और नागरी लिपि पहिले भी क, ख, ग, ज और फ के नीचे बिन्दी लगाकर अपने जीवित होने का सुबूत दे चुकी है।

उर्दू साहित्य हिन्दी साहित्य से सब से अधिक निकट है और दोनों की बोलचाल की भाषा और स्थान एक ही है। लेकिन फिर भी उर्दू में कुछ ऐसी विशेषतायें है जो हिन्दी से भिन्न हैं जैसे 'अत्फ़ और इजाफत।

'अत्फ़ दो या दो से अधिक शब्दों या वाक्यों को मिलाने का काम देता है। 'अत्फ़ के बहुत से अक्षर हैं लेकिन यहाँ पर केवल उस वाव (,) से