पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२०८

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हस्रत ने ला रखा, तिरी बज़्म-ए-ख़याल में
गुल्दस्त:-ए-निगाह, सुवैदा कहें जिसे

फूँका है किसने गोश-ए-महब्बत में, अय ख़ुदा
अफ़्सून-ए-इन्तिजार, तमन्ना कहें जिसे

सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से, डालिये
वह एक मुश्त-ए-ख़ाक, कि सह्रा कहें जिसे

है चश्म-ए-तर में हस्रत-ए-दीदार से निहाँ
शौक़े 'अिनाँ गुसेख़्तः, दरिया कहें जिसे

दरकार है, शिगुफ़्तन-ए-गुलहा-ए-'अश को
सुब्ह-ए-बहार, पँबः-ए-मीना कहें जिसे

ग़ालिब, बुरा न मान, जो वा'अज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है, कि सब अच्छा कहें जिसे

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शबनम ब गुल-ए-लालः न ख़ाली ज़ि अदा है
दाग़-ए-दिल-ए-बे दर्द नज़र गाह-ए-हया है

दिल ख़ूँ शुदः-ए-कश्मकश-ए-हस्रत-ए-दीदार
आईनः बदस्त-ए-बुत-ए-बदमस्त-ए-हिना है