पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२०४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२२२

मस्ती ब ज़ौक़-ए-ग़फ़्लत-ए-साक़ी हलाक है
मौज-ए-शराब यक मिशः-ए-ख्वाबनाक है

जुज़ ज़ख़्म-ए-तेग़-ए-नाज, नहीं दिल में आरज़ू
जैब-ए-ख़याल भी तिरे हाथों से चाक है

जोश-ए-जुनूँ से कुछ नज़र आता नहीं, असद
सहरा हमारी आँख में यक मुश्त-ए-खाक है

२२३


लब-ए-'असा की जुँबिश करती है गहवारः जुँबानी
क़यामत कुश्तः-ए-ला'ल-ए-बुताँ का ख़्वाब-ए-सँगीं है

२२४


आमद-ए-सैलाब तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
नक़्श-ए-पा जो कान में रखता है उँगली जादः से

बज़्म-ए-मै, वह्शतकदः है, किसकी चश्म-ए-मस्त का
शीशे में नब्ज़-ए-परी, पिन्हाँ है मौज-ए-बादः से