पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२००

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शर‘-ओ-आईन पर मदार सही
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई

चाल, जैसे कड़ी कमान का तीऱ
दिल में ऐसे के जा करे कोई

बात पर वाँ ज़बान कटती है
वह कहें और सुना करे कोई

बक रहा हूँ जुनूँँ में क्या क्या कुछ
कुछ न समझे, ख़ुदा करे, कोई

न सुनो, गर बुरा कहे कोई
न कहो, गर बुरा करे कोई

रोक लो, गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो, गर ख़ता करे कोई

कौन है, जो नहीं है हाजतमन्द
किस की हाजत रवा करे कोई

क्या किया ख़िज़्र ने सिकन्दर से
अब किसे रहनुमा करे कोई

जब तवक़्क़ो‘अ ही उठ गई, ग़ालिब
क्यों किसी का गिला करे कोई