पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१८९

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दी मिरे भाई को हक़ ने, अज सर-ए-नौ ज़िन्दगी
मीरज़ा यूसुफ, है ग़ालिब, यूसुफ़-ए-सानी मुझे

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याद है शादी में भी हँगामः-ए-यारब, मुझे
सुब्हः-ए-जाहिद हुआ है, ख़न्दः ज़ेर-ए-लब मुझे

है कुशाद-ए-खातिर-ए-वाबस्तः दर रह्न-ए-सुखन
था तिलिस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद, ख़ानः-ए-मक्तब मुझे

यारब, इस आशुफ़्तगी की दाद किस से चाहिये
रश्क, आसाइश प है जिन्दानियों की, अब मुझे

तब'अ है मुश्ताक़-ए-लज़्ज़तहा-ए-हस्रत, क्या करूँ
आरज़ू से, है शिकस्त-ए-आरज़ू मतलब मुझे

दिल लगा कर आप भी ग़ालिब मुझी से हो गये
'अिश्क़ से आते थे माने'अ, मीरज़ा साहब मुझे

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हुज़ूर-ए-शाह में, अह्ल-ए-सुख़न की आज़माइश है
चमन में, ख़ुश नवायान-ए-चमन की आज़माइश है