पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१८९

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दी मिरे भाई को हक़ ने, अज सर-ए-नौ जिन्दगी मीरजा यूसुफ, है ग़ालिब, यूसुफ़-ए-सानी मुझे ... २०४

याद है शादी में भी हँगामः-ए-यारब, मुझे सुब्हः- ए - जाहिद हुआ है, ख़न्दः शेर-ए-लब मुझे है कुशाद -ए-खातिर-ए-वाबस्तः दर रन-ए-सुखन था तिलिस्म-ए-कुफ़्ल-ए-अबजद, ख़ानः-ए-मक्तब मुझे यारब, इस आशुफ़्तगी की दाद किस से चाहिये रश्क, प्रासाइश प है जिन्दानियों की, अब मुझे तब श्र है मुश्ताक़-ए-लज्जतहा-ए-हस्रत, क्या करूँ प्रारजू से, है शिकस्त-ए-आरजू मतलब मुझे दिल लगा कर अाप भी गालिब मुझी से हो गये 'अिश्क़ से आते थे माने अ, मीरजा साहब मुझे २०५ हुजूर-ए-शाह में, अल-ए-सुख़न की आजमाइश है चमन में, ख़ुश नवायान-ए-चमन की आजमाइश है