पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१८१

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इस नजाकत का बुरा हो, वह भले हैं, तो क्या हाथ पावें, तो उन्हें हाथ लगाये न बने कह सके कौन, कि यह जल्वःगरी किसकी है पर्दः छोड़ा है वह उसने, कि उठाये न बने मौत की राह न देखू , कि बिन आये न रहे तुम को चाहूँ, कि न पायो, तो बुलाये न बने बोझ वह सर से गिरा है, कि उठाये न उठे काम वह आन पड़ा है, कि बनाये न बने 'निश्क़ पर जोर नहीं, है यह वह आतश, गालिब कि लगाये न लगे और बुझाये न बने १९३ चाक की ख्वाहिश, अगर वहशत ब 'अरियानी करे सुब्ह की मानिन्द, ज़ख़्म-ए-दिल गरीबानी करे जल्वे का तेरे वह 'पालम है, कि गर कीजे ख़याल दीदः-ए-दिल को जियारत गाह-ए-हैरानी करे है शिकस्तन से भी दिल नौमीद, यारब, कब तलक प्राबगीनः कोह पर 'अर्ज-ए-गिराँ जानी करे