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इस नज़ाकत का बुरा हो, वह भले हैं, तो क्या
हाथ पावें, तो उन्हें हाथ लगाये न बने

कह सके कौन, कि यह जल्वःगरी किसकी है
पर्दः छोड़ा है वह उसने, कि उठाये न बने

मौत की राह न देखूँ, कि बिन आये न रहे
तुम को चाहूँ, कि न आओ, तो बुलाये न बने

बोझ वह सर से गिरा है, कि उठाये न उठे
काम वह आन पड़ा है, कि बनाये न बने

'अश्क़ पर ज़ोर नहीं, है यह वह आतश, ग़ालिब
कि लगाये न लगे और बुझाये न बने

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चाक की ख़्वाहिश, अगर वहशत ब 'अरियानी करे
सुब्ह की मानिन्द, ज़ख़्म-ए-दिल गरीबानी करे

जल्वे का तेरे वह 'आलम है, कि गर कीजे ख़याल
दीदः-ए-दिल को ज़ियारत गाह-ए-हैरानी करे

है शिकस्तन से भी दिल नौमीद, यारब, कब तलक
प्राबगीनः कोह पर 'अर्ज़-ए-गिराँ जानी करे