पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१५७

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चश्म दल्लाल-ए-जिन्स-ए-रुसवाई दिल ख़रीदार-ए-जौक़-ए-ख्वारी है वही सदरँग नाल: फ़रसाई वहीं सदगूनाः अश्क बारी है दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से, फिर मशरिस्तान - ए- बेकरारी है जल्व: फिर अर्ज-ए-नाज़ करता है रोज बाज़ार-ए-जाँसुपारी है फिर उसी बेवफ़ा प मरते हैं फिर वही जिन्दगी हमारी है क़त अः फिर खुला है दर-ए-'अदालत-ए-नाज गर्म बाज़ार-ए-फ़ौजदारी है हो रहा है जहान में अँधेर जुल्फ़ की फिर सरिश्तःदारी है फिर दिया पारः-ए-जिगर ने सवाल एक फ़रियाद-ओ-ग्राह-ओ-जारी है