पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१५६

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जल्लाद से डरते हैं, न वा अिज से झगड़ते हम समझे हुये हैं उसे, जिस भेस में जो आये हाँ अहल-ए-तलब, कौन सुने तानः-ए-नायाफ्त देखा, कि वह मिलता नहीं, अपने ही को खो आये अपना नहीं वह शेवः, कि अाराम से बैठे उस दर प नहीं बार, तो का बे ही को हो पाये की हमनफ़सों ने असर-ए-गिरियः में तकरीर अच्छे रहे आप उस से, मगर मुझको डुबो आये उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है, गालिब हम भी गये वाँ, और तिरी तकदीर को रो आये फिर कुछ इक दिल की बेकरारी है सीनः जोया-ए-ज़ख्म-ए-कारी है फिर जिगर खोदने लगा नाखुन श्रामद-ए-फरल-ए-लालः कारी है किबलः-ए-मक्सद-ए-निगाह-ए-नियाज फिर वही पर्द:-ए-'अमारी है