पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१५५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

हमको उनसे, वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते, वफ़ा क्या है

हाँ भला कर, तिरा भला होगा
और दर्वेश की सदा क्या है

जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता, दु'आ क्या है

मैं ने माना कि कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ़्त हाथ आये, तो बुरा क्या है

१६४


कहते तो हो तुम सब, कि बुत-ए-ग़ालियः मू आये
इक मर्तबः घबरा के कहो कोई कि, वो आये

हूँ कशमकश-ए-नज़्'अ में, हाँ जज्ब-ए-महब्बत
कुछ कह न सकूँ, पर वह मिरे पूछने को आये

है सा'अिक़:-ओ-शो'लः-ओ-सीमाब का 'आलम
पाना ही समझ में मिरी आता नहीं, गो आये

जाहिर है, कि घबरा के न भागेंगे नकीरैन
हाँ, मुँह से मगर बादः-ए-दोशीनः की बू आये