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समास १०] नरदेह की स्तुति । यह श्रेष्ठों से भी श्रेष्ठ है, इसका कहां तक वर्णन किया जाय? ॥ १८॥ परमार्थ से ब्रह्मादिकों को विश्राम मिलता है और योगी लोग परब्रह्म में तन्मयता पाते हैं, अर्थात् लीन होजाते हैं ॥ १६ ॥ सिद्ध, साधु और महानुभावों के लिये परमार्थ विश्रामस्थान है और अन्त में सतो- गुणी जड़ पुरुषों के लिए भी, सत्संग से, यह सुलभ है ॥२०॥ परमार्थ ही जन्म का सार्थक है; परमार्थ संसार में तारक, अर्थात् पार करनेवाला है; परमार्थ धार्मिकों को श्रेष्ट लोक में पहुँचा देता है ॥ २१॥ परमार्थ तप- स्वियों का आश्रय और साधकों का आधार है; परमार्थ भवसागर का पार दिखाता है ॥ २२ ॥ जो परमार्थी है वही राज्यधारी, अर्थात् राजा है; जिसके पास परमार्थ नहीं वही भिखारी है । इस परमार्थ की उपमा किससे दें? ॥ २३ ॥ जब अनन्त जन्मों का पुण्य इकट्ठा होता है तभी पर- मार्थ बनता है और परमात्मा का अनुभव प्राप्त होता है ॥ २४ ॥ जिसने परमार्थ पहचान लिया उसने जन्म सार्थक किया; अन्य लोग, जो पापी हैं, कुल को तय करने के लिए जन्मे ॥ २५ ॥ अस्तु, भगवान् को प्राप्त किये बिना जो संसार का व्यर्थ परिश्रम करता है उस मूर्ख का मुहँ भी न देखना चाहिये ॥२६॥ भले आदमी को चाहिए कि वह परमार्थ सेवन करके शरीर सार्थक करे और हरिभक्ति करके पूर्वजों का उद्धार करे ॥२७॥ दसवां समास-नरदेह की स्तुति । ॥ श्रीराम ॥ इस नरदेह को धन्य है, धन्य ! इसकी अपूर्वता तो देखो कि इसके द्वारा जो परमार्थ की इच्छा की जाती है वह सब सिद्ध होती है ॥ १ ॥ इस नरदेह के ही योग से कोई भक्ति में लगे है और कोई परम विरता होकर गिरिकन्दरों का सेवन करते हैं ॥२॥ कोई तीर्थाटन करते हैं, कोई पुरश्चरण करते हैं और कोई निष्ठावन्त बनकर अखंड नामस्मरण । करते हैं ॥३॥ कोई तपस्या करने लगे, कोई वहुत अच्छे योग-अभ्यासी हुए और कोई अध्ययन करके वेदशास्त्र में व्युत्पन्न हुए ॥ ४ ॥ किसीने हठयोग कर के देह को अत्यन्त कटित किया और किसीने भाव के बल से परमात्मा की प्राप्ति की ॥ ५॥ कोई विख्यात महानुभाव हुए, कोई प्रसिद्ध भक्त कहलाये और कोई सिद्ध बनकर अकस्मात् आकाश में ३