यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दासबोध। [दशक १ ने का सामर्थ्य उसमें भी होता है। यही समझ कर श्राप सन्त लोगों के आगे मैं ढिठाई करता हूं ॥ १८ ॥ बड़े बड़े बाघ और सिंहों को देख कर लोग डर जाते हैं; परन्तु उनके छौने निडर होकर उनके सामने खेलते रहते हैं ॥ १६ ॥ वैसा ही में, संतो का दास, आप संत लोगों से बोलता हूं। अतएव आप लोग मुझे क्षमा करे ही गे ॥ २० ॥ अपना मनुष्य जव निर- र्थकभी कुछ बोलता है तब उसका समर्थन करना ही पड़ता है। परन्तु कुछ कहने की अवश्यकता नहीं है, न्यूनता पूर्ण कर लेनी चाहिए ॥ २१ ॥ यह तो प्रीति का लक्षण है; मन आपही आप कर लेता है। फिर आप सज्जन संत तो विश्व के मातापिता हैं ॥२२॥ मेरा अाशय जी में जान कर, अब, जो उचित हो, सो करिये । यह दासानुदास कहता है कि अब आगे कथा में ध्यान दीजिये ॥ २३ ॥ सातवाँ समास-कवीश्वर-स्तुति । ॥ श्रीराम ॥ अब कवीश्वरों की वन्दना करता हूं। ये शब्दसृष्टि के स्वामी हैं, या पर- मेश्वर है, जो वेदरूप से उत्पन्न हुए हैं ॥१॥ या ये सरखती के प्रत्यक्ष घर हैं, या ये नाना प्रकार की कलाओं के जीवन है, अथवा सचमुच ये अनेक प्रकार के शब्दों के भुवन हैं ॥२॥ यातो ये पुरुषार्थ के वैभव हैं, या जगदीश्वर के महत्त्व और उसकी नाना प्रकार की लीला और सत्कीर्ति का वर्णन करने के लिए ये निर्माण हुए हैं ॥३॥ अथवा ये शब्दरत्नों के समुद्र, मोतियों के मुक्त सरोवर (खुले हुए तालाब ) और नाना प्रकार की बुद्धि के आगर उत्पन्न हुए हैं ॥ ४ ॥ यातो ये अध्यात्मग्रन्थों की खानि और बोलते हुए चिन्तामणि है, अथवा थे श्रोताओं को प्रसन्न करनेवाली कामधेनु की नाना प्रकार की दुग्धधाराएं हैं ॥ ५॥ यातो ये कल्पना के कल्पतरु हैं अथवा मोक्ष के मुख्य आधारस्तंभ हैं; अथवा यह सायुज्यमुक्तिही कवियों के अनेक रूपों में प्रगट हुई है ॥६॥ यातो यह (कवि) परलोक का मुख्य स्वार्थ है, अथवा योगियों का गुप्त पंथ है, किंवा ज्ञानियों का पर- मार्थ रूप धर कर आया है ॥ ७॥ यातो यह (कवि) निर्गुण परब्रह्म की पहचान है अथवा यह माया से भिन्न परमात्मा का लक्षण है ॥ ८॥ यातो यह (कवि) श्रुति का भीतरी भाव है, या यह परमेश्वर का अलभ्य लाभ है, अथवा यह आत्मबोध, कविरूप से, सुलभ हुआ है ॥ ६ ॥ इसमें कोई सन्देह नहीं कि कवि सुमुच पुरुषों के अंजन, साधकों के