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दासबोध। [ दशक १ गणेशजी का सगुणरूप बहुत सुन्दर और मोहक है । उनके नृत्य करतेही सब देवता स्तब्ध हो जाते हैं ॥८॥ वे सदा मद से छुके रहते है, अानन्द से डोलते रहते हैं और हर्ष से सुप्रसन्नवदन होकर अति उल्ल- सित रहते हैं ॥ ६ ॥ भन्य और स्थूल रूपवाली भीममूर्ति महा प्रचंड है। विस्तीर्ण और उन्नत सस्तक बहुत से सिंदूर से चर्चित है ॥ १० ॥ नाना प्रकार की सुगंधों वाला परिमल गंडस्थलों से टपक रहा है । और भ्रमर- गण वहां आ आ कर इंकार शब्द कर रहे हैं ॥ ११ ॥ शुंडादंड, (खंड) सरल और कुछ मुड़ी हुई है। नूतन कपोल शोभित हैं । अधर लंबा है । क्षण क्षण में तीक्ष्ण सदसत्त्व, अर्थात् मदरस, टपक रहा है ॥ १२ ॥ चौदा विद्याओं का स्वामी -हस्व लोचन, अर्थात् छोटी छोटी श्राखें, हिला रहा है । कोमल और लचलचीले कान फड़ फड़ फड़का रहा है ॥ १३ ॥ रत्नों से जड़ा हुआ मुकुट झलझलाता है; उसमें कई प्रकार के रंगों का तेज पड़ रहा है। कानों में कुंडल चमक रहे हैं और उन पर जड़े हुए नीलमणि झलक रहे हैं ॥ १४ ॥ मजबूत और सफेद दांत रत्न और सोने के कड़ों से जड़े हुए हैं । उन कड़ों के नीचे छोटे छोटे सुवर्ण- पत्र चमक रहे हैं ॥ १५ ॥ थलथलीत तोंद हिलता है। उस पर नागबन्द, अर्थात् सर्प का पट्टा, लपेटा हुआ है । क्षुद्रघंटिका, अर्थात् करधनी, मन्द मन्द मुंकार से बज रही है ॥ १६ ॥ चार भुजा हैं। लम्बा पेट है। पीताम्बर काँछे हैं । तोंद पर सर्प का फना फड़क रहा है। सर्प फुस- कारें छोड़ रहा है ॥ १७ ॥ वह फन डुलाता और जिव्हा निकालता है। लिपट कर बैठा है । और नाभिकमल पर फन उठाकर चक मक देखता है ॥ १८ ॥ नाना जाति के फूलों की माला, सर्प तक, अर्थात् नाभि तक, जहां सर्प लपटा है, गले में पड़ी हैं। हृदयकमल पर रत्नों से जड़ा हुआ पदक शोभा दे रहा है ॥ १६ ॥ फरश और कमल शोभा दे रहे हैं । तीक्ष्ण और तेजस्वी अंकुश धारण किये हैं। एक हाथ में मोदक है; उस पर बहुत प्रीति है ॥ २० ॥ नट-नाट्य और कला-कौशल दिखला कर नाना प्रकार से नृत्य करते हैं । ताल मृदंग आदि साज बज रहे हैं । उपांग, अर्थात् नृत्य-समय की प्रतिध्वनि, की झंकार भर रही है ॥ २१ ॥ एक क्षण भर की भी स्थिरता नहीं है। चपलता में अग्रगण्य, अर्थात् अव्वल नम्बर के समझिये । खूब सजी हुई सुलक्षण सूर्ति सुन्दरता की खान है ॥ २२ ॥ नूपुरे रुन सुन बज रही हैं । पैंजन की आवाज झन झन हो रही है। धुंघुरुओं से दोनों पैर मनोहर देख पड़ते हैं ॥ २३ ॥ गणेशजी के कारण शंकर-सभा में शोभा आगई है। दिव्य अम्बर की