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उक्त संस्थायें कैसें स्थापित करना चाहिए। विवेके बहुत पैसावले । म्हणोन अवतारी बोलिले । मनु चक्रवर्ती जालें । येणेंचि न्यायें ॥५॥ 2 आज तक जिन जिन अवतारी राजाओं ने राज्य स्थापित किया, वे सब विवेक,' अर्थात् 'ज्ञान' के विशेष अधिष्ठान' थे। भगवान् श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि नराणां च नराधियम् -मनुष्य-समाज में राजा मैं हूँ । इस प्रकार राजा परमेश्वर-रूप है और राज्यसंस्था परमेश्वर का अधिष्ठान है। इस राज्यसंस्था का मुख्य कार्य यही है कि वह धर्म और नीति की सहायता करे और स्वयं भी धर्म-नीति की सहं,यता से चले। यह पहले कह आये हैं कि धर्म और नीति का उद्देश परमार्थ-प्राप्ति है। इसलिए राज्यसंस्था का में मुख्य हेतुं परमार्थ-प्राप्ति ही होना चाहिए। यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि परमार्थ, मुक्ति, मोक्ष, या स्वतन्त्रता मनुष्य-जांति के उद्धार को कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जब मानवी समाज, परमार्थ-लाम के लिए यत्न, करने लगता है, जब वह पर- तन्त्रता के जाल से छूटने का उपाय करने लगता है तब उसको नीति, धर्म और राज्य, इन तीन संस्थाओं का आश्रय लेना पड़ता है। इन्हीं संस्थाओं के आधार पर मनुष्यसमाज नैतिक, धार्मिक और राजकीय स्वतन्त्रता-अतएव पूर्ण स्वातन्त्र्य या मोक्ष प्राप्त करता है। १२-उक्त संस्थायें कैसे स्थापित करना चाहिए । समर्थः सिर्फ इतना ही बतला कर नहीं रह गये कि परमार्थप्राप्ति के लिए नीति, धर्म और राज्य की संस्थायें आवश्यक हैं। किन्तु उन्होंने विस्तार-पूर्वक यह भी बतलाया है कि परो- पकार बुद्धि से समाज का उद्धार करने के लिए इन संस्थाओं को किस तरह स्थापित करना चाहिए। (१) नीति-संस्था:-सिद्धों को एकान्तवासपूर्वक लोक-समुदाय इकठा करके, उसके अनुभव से अपने समय की वास्तविक नैतिक दशा का विचार करना चाहिए। उत्तम गुणों का सम्पादन करके लोगों को सिखाना चाहिए और अपना समुदाय उत्त- रोत्तर बढ़ाना चाहिए । समुदाय के लोगों की योग्यता के अनुसार उन्हें काम सौंपना चाहिए और उनमें जो पुरुष पास रखने योग्य हों उन्हें पास रखना चाहिए, जो दूर रखने योग्य हों उन्हें दूर काम पर भेजना चाहिए । लोगों की मण्डलियाँ-सभा समाज-वना कर . उनमें भूतदयों का बीजारोपण करने से नीति को स्थापना होगी। कारण यह है कि ज्ञानरूप से सर्व के अन्तःकरण समान होते हैं। यह ज्ञान सब भूतों में जीवों में-एकरूप होने के कारण सर्व लोगों को आत्मतुल्य / मानना मनुष्य का सहज धर्म है। यह नीति-स्थापना की अत्यन्त सूक्ष्म विधि-यहाँ हमने वतलाई । दासबोध में अत्यन्त विस्तृत वर्णन, विशेषता के साथ, किया गया है । सब बातें भूल ग्रंथ पढ़ने से ही मालूम हो सकती हैं । (२) धर्म-भजन-संस्थाः भक्तिमार्ग के लिए ब्राह्मण-मण्डली, सन्त-मंण्डली और भक्त-मण्डली स्थापित करना चाहिए। 4