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दासबोध। [ दशक १७ करके, और सार-प्रसार का विचार करके, फिर, सावधानी के साथ, सुखपूर्वक-ग्रन्य छोड़ देने में कोई हानि नहीं ॥ ३० ॥ ... चौथा समास-संशय मिटाओ। ॥ श्रीराम ।। जो उपाय बहुत लोगों के लिए उपयोगी है वह यदि वक्ता से पूंछा जाय तो उसे क्षोभ न करना चाहिए और बतलाते वतलाते क्रमान छोड़ना चाहिए ॥ १॥ श्रोता ने जो आशंका की हो उसे तत्काल मिटाना चाहिए । ऐसा न करना चाहिए कि, अपनी ही कही हुई बात से अपनी ही बात का खण्डन हो.जाय ॥ २॥ ऐसा न करना चाहिए कि, आगे का खयाल रखने से पीछे फँस जाय और पीछे ध्यान रखने पर आगे की वात उड़ जाय और इसी तरह जगह जगह फंसते जाय ॥३॥ जो तैराक स्वयं ही गोता खाता है वह दूसरों को कैसे निकाल सकता है ? इसी तरह लोगों की शंका जगह जगह रह जाती है ॥ ४॥ यदि हमने संहार का वर्णन किया है तो हमें सब का सार भी बतलाना चाहिए और माया का दुस्तर पार भी दिखाना चाहिए. ॥ ५॥ जितने सूक्ष्म नाम लेना चाहिए. उन सब का रूप प्रकट करके दिखला देना चाहिए, तभी विचारवन्त. वका कहला सकते हैं ॥ ६ ॥ ब्रह्म कैसा है, मूलमाया कैसी है, अष्टधा प्रकृति और शिवशक्ति कैसे हैं तथा षड्गुणेश्वर और गुणसाम्य (गुणमायाः) की स्थिति कैसी है ? ॥ ७ ॥ अर्धनारी नटेश्वर, प्रकृतिपुरुष का विचार, गुणक्षोभिणी और उसके बाद त्रिगुण कैसे हैं ? ॥ ८॥ पूर्व- पक्ष कहां से कहां तक है? वाच्यांश और लक्ष्यांश में क्या भेद है ? इत्यादि, इत्यादि नाना सूक्ष्म विचार जो करता है वही साधु धन्य है ॥ ६॥ वह नाना प्रकार के व्यर्थ विस्तार में नहीं पड़ता, बोला ही हुआ फिर नहीं वोलता और मौन्यगर्भ (परमेश्वर) को मन में ले आता है ॥१०॥ जो एक वार कहता है कि, परब्रह्म शुद्ध एक है, दूसरी बार कहता है कि, नहीं सारा जगत् परब्रह्म ही है, तथा तीसरी बार कहता है कि जो दृष्टा साक्षी है और सब पर जिसकी सत्ता है वही परब्रह्म है, वह वक्ता ठीक नहीं ॥११॥ वह निश्चल को चंचल और चंचल को निश्चल परब्रह्म कहता है, इसी प्रकार के झगड़े लगाये रहता है। एक निश्चय नहीं करता ॥ १२॥ वह चंचल और निश्चल-सब को केवल चैतन्य ही वत-