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४१२ दासबोध । [ दशक १६ छठवाँ समास-वायु-स्तुति । ।। श्रीराम ॥ इस वायुदेव को धन्य है, धन्य है । इसका स्वभाव विचित्र है। वायु । से ही सारे जीव जग में वर्तते हैं ॥ १॥ वायु से श्वासोच्छ्वाल होता है, नाना विद्याओं का अभ्यास होता है और वायु से ही शरीर में चलन (चेतन) आता है ॥ २॥ चलन, वलन, प्रसारण, निरोधन, आकुं- चन, प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कृर्म, कृकल, देवदत्त और धनंजय श्रादि वायु के अनेक स्वभाव है ॥ ४॥ पहले वायु ब्रह्मांड में प्रगट हुशा; फिर ब्रह्मांड और देवताओं में भरकर, नाना गुणों से युक्षा, पिंड में प्रगट हुभा ॥ ५॥ स्वर्गलोक के सब देवता, पुरुपार्थी दानव, और मृत्युलोक के मानव तथा विख्यात राजा, आदि नरदेह के नाना अनंत प्रकार के श्वापद, वनचर और जलचर आदि अानन्द से वायु के द्वारा क्रीड़ा करते हैं ॥६॥ ७ ॥ उन सब में वायु खेलता है,.. सारे पक्षी भी वायु से ही उड़ते हैं और वायु से ही अग्नि की ज्वाला उठती है ॥ ८॥ आकाश में मेघों को वायु एकत्र करता है, और फिर तुरंत ही अलग अलग करके हटा देता है । वायु के समान और दूसरा कारबारी नहीं ॥ ६॥ वायु आत्मा की सत्ता है, वह शरीर में वर्तता है। व्यापकता में वायु के सामर्थ्य की बराबरी कोई नहीं कर सकता ॥१०॥ वायु के बल से ही पर्वतों पर से मेघों की घनी फौजें लोकहित करने के लिए उठती हैं और वायुबल से ही विजली गर्जना करके कड़कड़ाती है ॥ ११ ॥ इस ब्रह्मांड में चन्द्र, सूर्य, नक्षत्रमाला, ग्रहमंडल, मेघमाला और नाना कलाएं सब वायु से ही हैं ॥ १२ ॥ जैसे कई मिली हुई चीजें अलग अलग नहीं की जा सकती; सने हुए पदार्थ फिर भिन्न भिन्न नहीं हो सकते, उसी प्रकार यह (पंचभौतिक) गड़बड़ कैसे मालूम हो सकता है ? ॥ १३ ॥ वायु " सरसर सरसर" चलती है, बहुत ओले गिरते हैं और पानी के साथ में बहुत से जीव भी गिरते हैं ॥१४॥ वायुरूप कमलकला (?) ही जल के लिए आधार है और जल के आधार से शेष पृथ्वी को धारण किये है ॥ १५ ॥ शेष पवन 'का आहार करता है, आहार से जब उसका शरीर फूल जाता है तब वह भूमंडल' का . भार अपने ऊपर लेता है; ॥ १६ ॥ महाकूर्म का बड़ा शरीर ऐसा जान पड़ता है जैसे ब्रह्मांड औंधा हुआ हो-इतना बड़ा उसका शरीर, वह भी