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समास २] सूर्य-स्तुति । 207 और इसका कथन स्पष्ट और निश्चयात्मक है ॥ १५ ॥ वह निष्ठावंतों का मंडन है; रघुनाथभक्ति का भूपण है, उसकी धारणशति असाधारण है। वह साधकों को सदृढ़ करता है ॥ १६ ॥ " श्रीरघुवीर समर्थ" के कवी- श्वर वाल्मीकि को धन्य है। उसको मेरा साष्टांगभाव से नमस्कार है ॥ १७ ॥ यदि वाल्मीकि ऋपिने न चतलाई होती तो रामकथा हमे कैसे मालूम होती? हम ऐसे समर्थ महात्मा का कहां तक वर्णन करें!॥ १८॥ उसने रघुनाथ की कीर्ति प्रगट की, इस कारण उसकी भी महिमा बढ़ी और रामकथा के श्रवण मात्र से भक्तमंडली सुखी हुई ।॥ १६ ॥ अपना काल सार्थक किया, रघुनाथकीर्ति में मन्न हुश्रा और उसके द्वारा भूमंडल में बहुत लोगों का उद्धार भी हुश्रा ॥ २० ॥ ऐसे बड़े बड़े रघुनाथभरता होगये, उनकी महिमा अपार है। "रामदास कहता है कि मैं उन सबों का किंकर ई. ॥ २१ ॥ दूसरा समास-सूर्य-स्तुति । ।। श्रीराम ।। इस सूर्यवंश को धन्य है, धन्य है। यह सव वंशों में श्रेष्ठ है। मार्तण्ड- मण्डल का प्रकाश सारे भूमंडल में फैला हुआ है ॥ १॥ सोम के शरीर में लांदन है, वह एक पक्ष में क्षीण होता जाता है और रविकिरणों के फैलते ही वह कला-हीन हो जाता है ॥२॥ इस कारण सूर्य की बरा- बरी वह भी नहीं कर सकता। सूर्य ही के प्रकाश से प्राणिमात्र को उजेला मिलता है॥३॥ इस सृष्टि में नाना प्रकार के उत्तम, मध्यम, अधम और तुगम, दुर्गम धर्म, कर्म, नित्य-नियम, इत्यादि सब सूर्य हीसे होते रहते हैं ॥ ४॥ वेद, शास्त्र, पुराण, मंत्र, यंत्र, नाना साधन, संध्या, स्नान, पूजा, विधि-विधान, भादि कोई कर्म-धर्म सूर्य विना नहीं हो सकते ॥ ५॥ असंख्य प्रकार के नाना योग, नाना मत सूर्य के उदय होने पर अपने अपने पंथ से जाते हैं ॥६॥ प्रापंचिक अथवा पारमार्थिक- कोई भी काम हो-दिन के बिना निरर्थक है-सार्थक नहीं होता॥७॥ सूर्य का अधिष्ठान नेत्र हैं, नेत्र न होने से सब अंधे हैं; अतएव, सूर्य बिना कोई काम नहीं चलता ॥८॥ यदि कहोगे कि, अंधे तो कविता करते हैं, तो यह भी. सूर्य का ही कारण है; क्योंकि मति ढंढी हो जाने पर फिर मति-प्रकाश कहां रहता है ? ॥६॥ उष्ण प्रकाश सूर्य का है -