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समास ८] सूक्ष्म-जीच-निरूपण। ३६७ आठवाँ समास-मूक्ष्म-जीव-निरूपण । ॥ श्रीराम ।। कोई कोई कीड़े रेणु ले भी सूक्ष्म होते हैं, उनकी आयु भी बहुत ही कम होती है और उसी तरह युति बुद्धि भी उनमें कम होती है ॥ १॥ ऐले नाना प्रकार के जीव होते हैं, वे देखने से नहीं दिखते; पर उनमें भी अंतःकरण-पंचक को स्थिति है ॥२॥ उनके भर के लिए उनका ज्ञान बस है, उनके विषय और उनकी इन्द्रियां भी उनके पास है; उनके सूक्ष्म शरीरों को विचार कर कौन देखता है ? ॥ ३ ॥ इन सूक्ष्मातिसूक्ष्म कीड़ों के लिए चीटी ही बहुत बड़ा हाथी है ! लोग कहते भी हैं कि, " चीटी के लिए मूत ही अथाह है" ॥४॥ सारांश, चीटियों की तरह अनन्त छोटे-नड़े शरीर हैं। उन सब में भी जीवेश्वर वास करता है ॥ ५॥ इस प्रकार के अनंत कीड़े पृथ्वी पर भरे हुए हैं। अत्यन्त उद्योगी पुरुप ही . इन सब का विचार करके देखता है ॥६॥ अनेक नक्षत्रों में नाना प्रकार के जीव तक उद्योगी पुरुषों को पर्वत के समान (सूक्ष्मदर्शक यंत्र से ?) भालते हैं। वे लोग उन जीवों की बड़ी बड़ी अवस्थाओं तक का पता लगा लेते हैं ! ॥ ७ ॥ पक्षियों का सा कोई छोटा नहीं है और पक्षियों के बरावर कोई बड़ा भी नहीं है-सर्प और मछलियों का भी यही हाल जानो। चीटी से लेकर हाथी तक बड़े बड़े शरीर हैं, उनका विचार करने से उनके भीतर के तत्व का निश्चय हो जाता है ।। || उनमें नाना जातियां और नाना रंग हैं; अनेक जीवों के अनेक रूप है; कोई सुरंग हैं, कोई बदरंग हैं-कहां तक बतलाया जाय ? ॥ १०॥ किसीको जगदी- श्वर ने सुकुमार बनाया है, किसीको कठोर बनाया है और किसी किसीके शरीर सुवर्ण के समान दैदीप्यमान बनाये हैं ॥ ११ ॥ इस प्रकार उन जीवों में शरीरभेद, आहारभेद, वाचाभेद और गुणभेद पाये जाते हैं, पर अंतःकरण सब का अभेद और एकरूप है-आत्मा सब का एक ही है ॥ १२॥ उन जीवों में से कोई कष्टदायक हैं; और कोई घातक हैं। इस प्रकार विचार करने पर इस सृष्टि में कितने ही अनमोल कौतुक देख पड़ते हैं ॥ १३॥ इस प्रकार सबों का विचार कर देखनेवाला इस जगत् मैं कौन प्राणी है? अपने अपने मतलब-भर के लिए, किंचित् मात्र, सभी जान लेते हैं ॥ १४ ॥ वसुंधरा नवखंडों में विभक्त है, इसके चारो ओर सप्तसागरों का घेरा है। ब्रह्मांड के बाहर भी पानी घिरा है; पर इस सब