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समास ४] ब्रह्मनिरूपण। गया है। इस प्रकार उसकी मूर्खता प्रकट हो जाती है ॥ २२ ॥ ऐसा किसीको न करना चाहिए, सब को अपना जीवन सार्थक करना चाहिए। (यदि जीवन सार्थक करने का उपाय) न समझ पड़े तो अन्य पढ़ कर मनन करना चाहिए (ऐसा करने से, सहज ही, जीवन सार्थक होने का उपाय मिल जाने की सम्भावना है) ॥ २३ ॥ चतुर मनुष्य को सब लोग मानते ही हैं, पर मूर्ख को सभी मनुष्य दपट देते हैं। अगर जी में संपत्ति (वैभव, संपदा) पाने की इच्छा हो तो चतुर बनना चाहिए ॥ २४ ॥ अहो! चतुरता प्राप्त करने के लिए चाहे जितने कष्ट उठाने पड़े; पर उसे अवश्य सीखना चाहिए; कष्ट-पूर्वक बहुतों की सेवा करके भी चतुरता सीखना बहुत अच्छी वात ॥२५॥ चतुर उसीको जानना चाहिए जिले वहुत लोग मानते हों। चतुर मनुष्य के लिए दुनिया में क्या कमी है? ॥२६॥ इस संसार में जो अपना हित नहीं करता उसे आत्मघाती समझो; उस मूर्ख के समान और कोई पापी नहीं है ॥ २७ ॥ जो चतुर है वह ऐसा कभी नहीं कर सकता कि, स्वयं वह संसार में कष्ट उठावे और दूसरों का क्रोध भी सहे ॥ २८ ॥ सहज स्वभाव से, साधकों को यह सिखा दिया है; अच्छा लगे तो खुशी से ग्रहण करें और न अच्छा लगे तो एक तरफ छोड़ दें ॥२६॥ तुम श्रोता लोग परम दक्ष हो, अलक्ष की ओर लक्ष लगाते हो; यह तो प्रत्यक्ष सामान्य बात है; जानते ही हो ! ॥३०॥ चौथा समास-ब्रह्मनिरूपण । ॥ श्रीराम ॥ पृथ्वी से पेड़ होते हैं, पेड़ों से लकड़ियां होती हैं और लकड़ियां भस्म होकर फिर पृथ्वी ही होती है ॥ १॥ पृथ्वी से बेल होती है, वह नाना प्रकार से फैलती है; पर अन्त में सड़ गल कर पृथ्वी ही होती है ॥२॥ नाना प्रकार के धान्यों के अनेक तरह के भोजन बना कर मनुष्य खाते हैं; फिर वही नाना प्रकार का मल और वमन होकर पृथ्वी ही होती है ॥ ३॥ अनेक पशुपक्षी जो कुछ खाते हैं उसका भी वही हाल होता है। उनका मल भी सूख कर खाक हो जाता है और पृथ्वी में मिल जाता है ॥४॥ मनुष्य आदि प्राणी भी भर कर पृथ्वी ही हो जाते हैं ॥५॥ अनेक प्रकार के तृण और पदार्थ भी सड़ कर मिट्टी हो जाते हैं। अनेक