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दासबोध। [ दशक १३ करना चाहिए । सार वस्तु ढूंढ़ कर लोगों के सन्मुख रख देना ही निरूपण है ॥ २१॥ निरूपण का श्रद्धापूर्वक विचार करना चाहिए; अनेक गुप्त तत्वों को समझना चाहिए और समझते समझते निस्सन्देह बनना चाहिए ॥२२॥ पाठो देहों का विवरण करके देखने से सहज ही निस्स-1 न्देहता प्राप्त होती है और अखंड निरूपण से समाधान होता है ॥२३॥ जहां तत्वों का गड़बड़ है वहां शान्ति कहां से मिल सकती है ? इस कारण सव को इस गड़बड़ से दूर रहना चाहिए ॥ २४ ॥ इस सूक्ष्म संवाद को बार बार मनन करना चाहिए । श्रव, अगले समास में साव- धान होकर लधुबोध सुनो ॥ २५ ॥ छठवाँ समास-लघुबोध । ॥ श्रीराम ॥ पहले पंचतत्वों के नामों का अभ्यास करना चाहिए; फिर, अपने अनुभव से उनका रूप जानना चाहिए ॥ १ ॥ इसके बाद इस बात का निश्चय करना चाहिए कि, शाश्वत क्या है और अशाश्वत क्या है ॥ २ ॥ पंचभूतों का विचार, उनके नामरूप और सारासार का निश्चय यहां बतलाया जाता है सो सावधान होकर सुनोः- ॥३॥ पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश नाम के पाँच भूत हैं । अब इनका रूप सुनना चाहिए ॥ ४॥ पृथ्वी कहते हैं धरती को, आप कहते हैं पानी को और अग्नि, सूर्य, तथा अन्य जो सतेज पदार्थ हैं, उन्हें तेज कहते हैं ॥ ५॥ वायु हवा को कहते हैं; और इस सारे पोलेपन को आकाश कहते हैं। अब इनमें जो शाश्वत हो उसे अपने मन में विचारो ॥ ६॥ जैसे भात का एक सीत टटोलने से सब का मर्म मालूम हो जाता है वैसे ही थोड़े अनुभव से बहुत जानना चाहिए ॥ ७॥ यह तो प्रत्यक्ष मालूम है कि, पृथ्वी बनती और बिगड़ती है; सृष्टि में नाना प्रकार की रचना होती जाती है ॥ ८॥ और जो बनता है वह बिगड़ता है; आप (जल) भी नाश हो जाता है, तेज भी प्रगट होकर बुझ जाता है और वायु भी कहते हैं कि श्रीसमर्थ रामदास स्वामी ने श्रीमान् छत्रपति शिवाजी महाराज को शिंगणवाड़ी में यह लघुवोध किया ।