यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३२४ दासबोध। [ दशक १२ .... पाँचवाँ समास-त्रिविध आत्मनिवेदन। ॥ श्रीराम ॥ लकीरों के मोड़ से अक्षर बनते हैं, अक्षरों से शब्द बनते हैं;और शब्दों : से गद्य-पद्य-मय प्रबन्ध होते हैं ॥१॥ इसी प्रकार वेद, शास्त्र, पुराण, अनेक काव्य, इत्यादि अगणित ग्रन्थों का निरूपण होता है ॥२॥ अनेक ऋषि, उनके अनेक मत; तथा भाषा और लिपि भी अनन्त हैं ॥३॥ वर्ग, ऋचा, श्रुति, स्मृति, अध्याय, स्तबक, जाति, प्रसंग, मान, समास, पोथी आदि अनेक नाम हैं ॥ ४॥ पद, श्लोक, बीर, कड़खा, साखी, दोहा, इत्यादि अनेक नाम हैं ॥ ५॥ डफगान, मुरजगान, वीणा- गान, कथागान, इत्यादि नाना प्रकार के गान हैं। ऐसे ही अनेक खेल भी हैं ॥ ६ ॥ ध्वनि, घोष, या नाद चारो वाणियों में है। इसका भेद सुनिये:- ॥ ७ ॥ उन्मेष, अर्थात् स्फुरण, परा से; ध्वनि पश्यन्ति से; नाद मध्यमा से और शब्द चौथी वाणी या वैखरी से उत्पन्न होता है। वैखरी नाना शब्दरत्नों को प्रगट करती है ॥ ८ ॥ अकार, उकार, मकार तथा आधी मात्रा, इस प्रकार 'ॐ' की कुल साढ़े तीन मात्राओं से ही सम्पूर्ण वर्णों की उत्पत्ति हुई है ॥ ६॥ इसके बाद फिर, राग-ज्ञान, नृत्य: भेद, तान-मान, अर्थभेद, तत्वज्ञान, इत्यादि की सृष्टि हुई है ॥ १०॥ शुद्ध सतोगुण ही सम्पूर्ण तत्वों में मुख्य तत्व है । ॐ की अर्धमात्रा ही शुद्ध सतोगुण-महत्तत्व या मूलमाया-है * ॥ ११ ॥ अनेक छोटे बड़े तत्व मिल कर आठो शरीर बने हैं। अष्टधा प्रकृति नाशवान् है ॥ १२ ॥ परब्रह्म हवा से रहित आकाश की तरह सघन है । अष्ट देहों का निर- सन करके उसे देखना चाहिए ॥ १३ ॥ ब्रह्मांड से पिंड तक उत्पत्ति, और पिंड से ब्रह्मांड तक संहार-इन दोनों से अलग जो शृद्ध सार है वही त्रिमल ब्रह्म है ॥ १४ ॥ दृश्य प्रकृति जड़ है; अात्मा चंचल है और विमल ब्रह्म निश्चल है। उसीका विवेक करके उसीमें तद्रूप होना चाहिए ॥ १५॥ यह समझना, कि तन, मन, वचन और पदार्थमात्र के सहित मैं परमात्मा का हूं, जड़ आत्मनिवेदन है ॥ १६ ॥ यह समझना कि- सम्पूर्ण सृष्टि का कर्त्ता जो वह जगदीश है उसीका प्राणिमात्र अंश है,

  • ॐ' में से अकार तमोगुण का, उकार रजोगुण का और मकार सत्वगुण का दर्शक

है और आधी. मात्रा ( विन्दु ) शुद्ध सत्वगुण या मूलमाया या महत्तत्व की दर्शक है। -