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दासबोध। [दशक १२ ॥ १२ ॥ यह तो सभी जानते हैं कि, खवरदारी रखनेवाला (सावधान पुरुष) सुखी रहता है और बेखवर (गाफिल या असावधान ) दुखी रहता है ॥ १३॥ अतएव, जो सब प्रकार से सावधान है वह धन्य है। वही एक लोगों को सन्तुष्ट रख सकता है ॥ १४॥ पहले से तो साव- धान रहने में आलस किया और बीच में अचानक हमला होगया; अब सम्हलने का मौका कहां है ? ॥ १५ ॥ इस लिए जो दूरदर्शी पुरुष हैं उनके विचार का अनुकरण करना चाहिए; क्योंकि एक दूसरे का आदर्श देख कर ही लोग चतुर बनते हैं ॥ १६ ॥ इस लिए चतुर और गुणवान् लोगों को पहचान कर उनके गुणों को ग्रहण करना चाहिए और अवगुणों की परीक्षा करके उन्हें छोड़ देना चाहिए ॥ १७ ॥ विवेकी पुरुप सब की परीक्षा तो करता ही है; परन्तु मन किसीका नहीं तोड़ता; वह मनुष्यमात्र को अपने अनुमान में लाकर परखता है ॥ १८॥ यों तो वह सब को समान देख पड़ता है; पर वास्तव में वह बड़ा अच्छा विवे- की होता है-वह कस्मे-निकम्मे (उद्योगी और श्रालसी) लोगों को अच्छी तरह पहचानता है ॥ १६ ॥ सब से बड़ी अपूर्वता उसमें यही होती है कि, जानबूझ कर, वह सब प्रकार के लोगों का अंगीकार करता है और जिसको जैसा चाहिए उसको वैसा ही गौरव देता है ॥ २० ॥ दूसरा समास-संसार का अनुभव । ॥ श्रीराम ॥ हे संसार में आये हुए स्त्री-पुरुष और निस्पृह लोगो ! मैं जो कुछ कहता हूं उसे ध्यानपूर्वक सुनो ॥ १॥ वासना क्या कहती है ? कल्पना किस बात की कल्पना करती है ? देखना चाहिए । क्योंकि मन में नाना प्रकार की तरंगें उठती हैं ॥२॥ इच्छा तो यह होती है कि, अच्छा खायँ, अच्छा पिये, अच्छे गहने और अच्छे कपड़े पहनें; तथा सब बातें मन के अनुकूल हों; परन्तु इनमें से होती एक बात भी नहीं है-भलाई करते हुए अकस्मात् बुराई हो जाती है ॥ ३॥ ४ ॥ संसार में प्रत्यक्ष कोई सुखी और कोई दुःखी देख पड़ते हैं और प्रायः लोग धबड़ा कर अन्त में भाग्य पर आ गिरते हैं ! ॥ ५॥ अचूक यत्न कर नहीं सकते, इसी लिए जो कुछ करते हैं वह ठीक नहीं होता, और चाहे सो करो, अपना अव: गुण जान नहीं पड़ता ॥ ६ ॥ जो आप अपना ही नहीं जानता वह दूसरे