समान ८] प्रतीति-निरूपण। २८६ मैंन्स की स्वर्गद करना अच्छी बुद्धि का लक्षण नहीं है । विना देखे-भाले वर्ष पछतावा होता है।॥ १०॥ बहुत से मनुष्य विश्वास में आकर घर सोल ले लेते हैं परन्तु कपटी लोग अपना कपट उसमें चला ही देते हैं। उस बापट को समझना चाहिए ॥ ११ ॥ बिना देखे-भाले अन्न या वस्त्र ननले कभी कभी लोग प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं । झूठे का विश्वास करना ही मूर्खता है ॥ १२ ॥ चोर की संगति करने से अवश्य हानि होगी । कपटी और ठग पहचानने से जाना जाता है ॥ १३ ॥ झूठे, नामली, भेष बदल कर ठगनेवाले और नाना प्रकार के कपट-जाल रचनेवालों को अच्छी तरह से पहचान रखना चाहिए ॥ १४॥ दिवा- लियों का चमत्कार और वैभव देखने से तो बहुत बड़ा मालूम होता है: पर है वह सारी धोखेबाजी! आगे चल कर उसका भंडा फूट जाता है।॥ ३५॥ इसी प्रकार, विना विश्वास ज्ञान ग्रहण करने से समा- धान नहीं होता ! सन्देहयुक्त ज्ञान से बहुतों का अनहित हो चुका है ॥१६॥ मंत्र यंत्र के उपदेश से अज्ञान प्राणी ऐसे फंसाये जाते हैं जैसे रोगी को उपके से अनाड़ी वैद्य मार डाले॥१७॥कया वैद्य होने के कारण यदि किन्ली विचारे मनुष्य के प्रारण चले जायँ तो इसमें दूसरे का क्या उपाय है ? ॥ १८॥ दुख के मारे भीतर ही भीतर सूखता जाता है; पर वैद्य से दवा पूछने में लजाता है, तो फिर आत्महत्यारापन उसे क्यों न शीमे? ॥ १६ ॥ ज्ञाता पर अभिमान करना स्वयं, अज्ञानी होने के कारण, बना है। भला देखो तो, ऐसा करने से हानि किसकी होती है (शाता की या अभिमान करनेवाले की ?) ॥ २० ॥ जब स्वयं यह चिश्वाल हो जाय कि, पापों का खंडन हो गया और जन्म-यातना मिट गई, तब जानो कि अव भलाई है ॥ २१ ॥ जद समझो कि, हमने परमे- श्वर को पहचान लिया, हम कौन है-सो भी जान लिया और आत्म- निवेदन हो गया, तब जानो कि अब ठीक है ॥२२॥ जब यह मालूम ह्ये जाय कि, ब्रह्मांड किसने रचा और किस पदार्थ का रचा, मुख्य कर्ता कीन है, तब समझो कि, अब सब ठीक है ॥ २३ ॥ इतना मालुम होने में यदि शंका रह गई तो समझ लो कि, अव तंक का किया हुआ सारा परमार्थ व्यर्थ गया और विना विश्वास के वह पुरुष संशय में ही डूबा रहा ॥२४॥यह परमार्थ का मर्म है-इसमें यदि कोई असत्य कहता हो तो
- ऐसे दिवालिये किसी शहर में जाकर अपनी दुकान जमाते हैं और लोगों का बहुत सा
धन हाथ आ जाने पर फिर दिवाला निकाल देते हैं। ३७