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२८८ दासबोध । [ दशक १० इससे अधिक और क्या बुद्धि का प्रकाश हो सकता है ? निष्काम भक्त को कीर्ति, यश और प्रताप सदा मिलता है॥२६ ॥ जहां अध्यात्म-निरूपण और हरिकीर्तन हुआ करता है वहां मनुष्यमात्र का कल्याण होता है ॥ २७ ॥ जिस परमार्थ में भ्रष्टाकार नहीं होता वह कभी संकुचित नहीं होता, और उसके निश्चय का समाधान नहीं बिगड़ता ॥ २८ ॥ सारासार का विचार करने से, और न्याय-अन्याय पर सदा दृष्टि रखने से, परमात्मा की दी हुई बुद्धि स्थिर हो जाती है ॥ २६ ॥ अनन्य भक्त को भगवान् स्वयं बुद्धि देता है । भगवद्गीता का वचन सुनिये:-॥ ३० ॥ ददामि बुद्धि योगं तं येन मामुपयांति ते ॥ परन्तु सगुण-भजन; तिस पर भी ब्रह्मज्ञान; और फिर अनुभवयुक्ता शान्ति, संसार में दुर्लभ है ॥ ३१ ॥ आठवाँ समास-प्रतीति-निरूपण । ॥ श्रीराम ॥ प्रतीति के लक्षण सुनो । जो प्रतीति का विचार करते हैं वही चतुर हैं। और बाकी पुरुष, जो प्रतीति-रहित हैं वे, पागल और दीन हैं ॥१॥ नाना प्रकार के रत्न और सिक्के, बिना परीक्षा किये लेने से हानि होती है, इसी प्रकार यदि विश्वास न आवे तो निरूपण में बैठना ही न चाहिए ॥२॥ घोड़ा और शस्त्र फेर कर देख लेना चाहिए । जब वे अच्छे मालूम हो तव जानकार पुरुष को उन्हें लेना चाहिए ॥३॥ जब यह देख ले कि, बीज उगने लायक है दाम डाल कर उसे लेना चाहिए। इसी प्रकार जब प्रतीति हो जाय तब निरूपण सुनना चाहिए ॥४॥ जब लोगों को यह विश्वास हो जाय कि, यह मात्रा लेने से शरीर आरोग्य होता है तब उस मात्रा को अवश्य लेना चाहिए ॥५॥ प्रतीति बिना ओषधि लेना अपनी आरोग्यता निगाड़ना है-अनुमान से कार्य करना मूर्खता है. ॥ ६॥ बिना प्रतीति के सोने का गहना बनवा लेना मानो जान बूझ कर अपने को ठगवाना है ॥ ७॥ बिना देखे-भाले कोई काम करना ठीक नहीं, इससे प्राण जाने की शंका रहती है ॥ ८॥ भले श्रादमियों को अनुमान से कार्य कभी न करना चाहिए, वैसा करने से, भलाई के बदले बुराई हो रहती है ॥ ६ ॥ पानी में डूबी हुई