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समास ३] सृष्टि की उत्पत्ति। २७७ समझे तो भी उसमें कर्तृत्व कहां से आया ? ॥१४॥ हे स्वामी महाराज, कृपा करके अब इस प्रकार समझाइये कि, जिससे यह सारा वृत्तान्त अनुभव में आ जाय ॥१५॥ अक्षर विना वेद नहीं होते, अक्षर विना देह के नहीं होते और देह विना देह के निर्माण नहीं होता ॥ १६॥ सब देहों में नरदेह श्रेष्ठ है, नरदेह में ब्राह्मणदेह श्रेष्ठ है और ब्राह्मणदेह को ही वेद का अधिकार है ॥ १७॥ अस्तु । वेद कहां से हुए? देह किसकी बनी हुई है ? देव कैसे प्रगटे और किस प्रकार प्रगटे ? ॥ १८ ॥ ऐसी शंका बढ़ी, इसका समाधान करना चाहिए । इस पर वक्ता कहता है कि अच्छा, अब सावधान हो जाओ ॥ १६ ॥ अनुभव का विचार करने से संकट उपस्थित होता है। (क्योंकि लोकव्यवहार और शास्त्रनिर्णय एक ही प्रकार के न होने के कारण अनुभव एक प्रकार का नहीं होता)।सारा विगाड़ पैदा होता है, और घड़ी घड़ी अनुमान करने से व्यर्थ समय नष्ट होता है ॥ २०॥ लोकव्यवहार और शास्त्रनिर्णय में बहुत प्रकार के निश्चय हैं-इस कारण एक अनुभव नहीं आ सकता ॥२१॥ अव यदि शास्त्र को डरते हैं तो यह गोलकधंधा सुरझता नहीं है और यदि यह गोलकधंधा सुरझाते हैं तो शास्त्रभेद उपस्थित होता है ॥ २२ ॥ शास्त्र की रक्षा करके प्रतीति लाना चाहिए, पूर्वपक्ष त्यागकर सिद्धान्त देखना चाहिए और चतुर या मूर्ख एक वचन से समझाना चाहिए ॥ २३ ॥ शास्त्र में पूर्वपक्ष कहा है और पूर्वपक्ष मिथ्या को कहते हैं। अतएव, इसका दोष हम पर नहीं आ सकता ॥ २४ ॥ तथापि शास्त्र की रक्षा करके कुछ कौतुक बतलाते हैं। श्रोताओं को अच्छी तरह विचार करना चाहिए ॥ २५॥ . तीसरा समास-सृष्टि की उत्पत्ति । ॥ श्रीराम ॥ निरुपाधि श्राकाश ही निराभास ब्रह्म है । ऐसे निराभास ब्रह्म में मूल- । माया का जन्म हुआ ॥ १॥ वह मूलमाया वायुस्वरूप ही है । पंचभूत और त्रिगुण उस वायुरूपी मूलमाया में होते हैं ॥२॥ आकाश से जो वायु हुआ, वह वायुदेव कहलाया और वायु से जो अग्नि हुआ, वह अग्निदेव कहलाया ॥३॥ अग्नि से जो श्राप हुना वही श्रापो-नारायण कद्दलाया और आप से जो पृथ्वी हुई वही सम्पूर्ण वीजों की माता हुई