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दसवाँ दशंक। पहला समास-अन्तःकरण एक है। ।। श्रीराम ॥ श्रोता यह प्रश्न करता है कि, “ सब का अन्तःकरण एक है अथवा अलग अलग है ? यह सुझे निश्चयात्मक बतलाइये" । अच्छा, इसका उत्तर सुनोः-॥१॥२॥ इसमें कोई शक नहीं कि, सब का अन्तःकरण एक ही है । यह अनुभव की बात है ॥३॥ इस पर श्रोता कहता है कि, यदि सब का अंतःकरण एक ही है तो फिर सब में एकता और मेल क्यों नहीं है ? ॥ ४॥ यदि अंतःकरण एक ही है तो फिर एक के खाने से सब को अधा जाना चाहिए, एक के संतुष्ट होने पर सव को संतुष्ट रहना चाहिए और एक के मरने पर सब को मर जाना चाहिए ! ॥ ५॥ इस जगत् में कोई तो सुखी और कोई दुःखी हो रहे हैं। फिर यह कैसे जाना जाय कि, सब का अंतःकरण एक है ? ॥६॥ लोगों की भावना अलग अलग है; किसीसे किसीका भी मेल नहीं खाता; अतएव यह समझ में नहीं आता कि, अन्तःकरण एक कैसे है ॥७॥ यदि सब का अंन्तःकरण एक होता तो एक के अन्तःकरण की बात दूसरे को मालूम हो जाती और जगत् में कोई गोप्य या गुह्य वात छिपी न रह सकती ॥८॥ इस लिए, यह बात समझ में नहीं आती। अंतःकरण एक होना सम्भव नहीं। यदि वह एक है तो फिर लोगों में विरोध क्यों फैल रहा है ? ॥ ॥ सर्प काटने को दौड़ता है और प्राणी डर कर भागता है। यदि सब जीवों का अंतःकरण एक है तो फिर यह विरोध क्यों है" ? (अर्थात् न तो सर्प को काटने के लिए दौड़ना चाहिए और न उस जीव को डर कर भागना चाहिए)॥१०॥ ऐसी शंका श्रोता ने उठाई: इस पर वक्ता कहता है कि, घबड़ाओ मंत-सावधान होकर निरूपण सुनो ॥११॥ अन्तःकरण कहते हैं संज्ञा को और संज्ञा कहते हैं जानने के स्वभाव को; और यही देहरक्षा का उपाय, अर्थात् जानने की कला है ॥ १२॥ सर्प जान कर डंसने आता है और प्राणी जान कर भगता है-अर्थात् संज्ञा ( consciousness) दोनों ओर है॥ १३ ॥ जब सरासर दोनों तरफ संज्ञा एक ही देख रहे हैं तब अन्तःकरण भी जरूर एक ही हुश्रा । क्योंकि ऊपर अन्तःकरण को -