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पंचभूत भो त्रिगुण। विकार हो जाता है उसी प्रकार ब्रह्म में मूलमाया होती है ॥ १॥ परमल अन्य में बतलाया जा चुका है-पिछले दशक में इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं-मूलमाया में पंचभूतों का अस्तित्व दिखलाया जा चुका ॥ २॥ उससे (मूलमाया में) जो जानपन है वही सत्वगुण है, प्रश्नावरन तमोगुण है और दोनों का मध्यम (कुछ जानपन और कुछ अनजानपन ) जोगुण है ॥ ३॥ यदि कहोगे कि वहां जानपन कहां से याचा, तो इसका अभिप्राय यह है कि, जिस तरह पिंड में महाकारण दही सर्वसाक्षिणी (तुर्या) अवस्था होती है ॥४॥ उसी प्रकार ब्रह्मांड का सहाकारण देह मूलप्रकृति है; इसलिये मूलप्रकृति में जानपन का अधिष्टान है ॥ ५॥ अस्तु । मूलमाया में त्रिगुण गुप्त रीति से रहते हैं । परन्तु जब वे स्पष्ट होते हैं तब उस दशा को चतुर लोग गुणक्षोभिणी (गुणमाया) कहते हैं ॥ ६ ॥ जैसे किसी घास की बाली खिल कर खुल जाती है उसी प्रकार मूलमाया से त्रिगुण भी सहज ही में प्रकट हो जाते है ॥ ७ ॥ मूलमाया वायुस्वरूप होती है और उसीको, अल्प गुण-विकार होने पर, गुगक्षोभिणी कहते हैं ॥ ८ ॥ इसके बाद जानपन, अनजानपन और जान-अनजान-पन का मध्यम ये तीनों (अर्थात् निगुण) प्रकट होकर मिश्रितरूप से वर्तने लगते हैं। इसके बाद शब्द प्रकट होता है, जो अकारादि अक्षरों का अधिष्ठान है ॥ वही शब्द आकाश का गुण है । शब्द से ही वेदशास्त्रों का श्राकार हुआ है ॥ १० ॥ पंचभूत, त्रिगुण, जानपन, अजानपन, इत्यादि सद वायु का ही विकार है ॥ ११ ॥ घायु न होने से जानपन कहां से श्रा सकता है? और जानपन न होने से अजानपन कहां से हो सकता है? जान-अजानपन वायु के कारण से ही रह सकते हैं ॥ १२ ॥ जशं चलन वायु का लक्षण) बिलकुल नहीं है वहां शान-लक्षण कहां से हो सकता है ? इस लिए वायु का ही गुण मुख्य है ॥१३ ॥ यद्यपि एक से दूसरे का प्रकट होना प्रत्यक्ष में देखा जाता है, तथापि तीन गुण और पांच भूत भूलस्वरूप ( मूलमाया) में ही होते हैं॥१॥इस प्रकार, यह कर्दम श्रादि ही का है-वही फिर पीछे से स्पष्ट होता है । इसके सिवाय, यह कहना भी सच है कि, क्रमशः एक से दूसरे की उत्पत्ति होती है ॥१५॥ ऊपर वायु का मिश्रण बतलाया गया । श्रव, उसके बाद, वायु से अग्नि होता है । परन्तु, वास्तव में, वह भी कर्दमरूप ही होता है ॥ १६ ॥ फिर अग्नि से श्राप और श्राप से पृथ्वी होती है । परन्तु ये भी कर्दमरूप ही होते हैं ॥ १७॥