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२३० दासबोध । .[.दशक अग्नि का अंश है और कठिनता (पृथ्वी का लक्षण) में जो निरोध का लक्षण है वही पृथ्वी में वायु है ॥ ३५ ॥ और यह बात प्रकट ही है कि आकाश सब की तरह पृथ्वी में भी है। जब कि आकाश ही में पंचभूतों का भास है तब फिर आकाश का अन्य चारः भूतों में होना कोई आश्चर्य की बात नहीं ॥ ३६ ॥ क्योंकि आकाश ऐसा सूक्ष्म है कि वह न तोड़ने । टूटता है; न फोड़ने से झूटता है; और न तिलमात्र कहीं से हटता है ॥ ३७॥ अस्तु । पृथ्वी में भी पांचो भूतों का होना सिंद्ध है और इस प्रकार, प्रत्येक महाभूत में पांचो पाँच भूत उपस्थित हैं ॥ ३८ ॥ परन्तु यह बात ऊपर ऊपर से नहीं मालूम होती; किन्तु मन में बड़ा सन्देह होता है और भ्रान्तिवश, इस वात पर, विवाद करने का अभिसान भी ना जाता है ॥ ३६॥ यद्यपि यों तो वायु में और कुछ नहीं जान पड़ता; तथापि, सूक्ष्म वायु में भी, खोजने पर, पंचमहाभूतों का अस्तित्व पाया जाता है ॥ ४० ॥ और यही पंचभूतात्मक वायु मूलमाया है । इसीमें सूक्ष्म त्रिगुण हैं, अत- एव माया और त्रिगुण, सब पंचभौतिक ही हैं ॥ ४१ ॥ इस प्रकार पंच- महाभूत, और त्रिगुण, मिल कर अष्टधा प्रकृति बनी है। अतएव त्रिगुणों के साथ वह भी पंचभौतिक ही समझिये ॥ ४२ ॥ खोज कर देखे बिना संदेहं रखना मूर्खता है । इस लिए सूक्ष्मदृष्टि से इसका विचार करना चाहिए ॥ ४३ ॥ माया में जो सूक्ष्म पंचभूत थे वे त्रिगुणों से मिल कर स्पष्टं दशा को प्राप्त हुए; और फिर जड़त्व पाकर स्थूल पंचतत्वों के रूप में हुए ॥४४॥ फिर, उन स्थूल पंचतत्वों से यह पिंड, ब्रह्मांड, इत्यादि की रचना हुई ॥ ४५ ॥ अस्तु । ऊपर जो पंचमहाभूतों का मिश्रण, सूक्ष्म रीति से, बतलाया गयां वह सब ब्रह्मांड बनने के पहले का हाल है* ॥ ४६॥ ब्रह्मांड या सृष्टि की रचना के पहले मूलमाया थी । उसका सूक्ष्म दृष्टि से विचार करना चाहिए ॥४७॥ (पंचतत्व, अंहंकार और मह- तत्व मिल कर) यह सप्तकंचुकी प्रचंड ब्रह्मांड (त्रैलोक्य ) तब न हुआ था; यह सब माया-अविद्या का गड़बड़ इसी और की बात है (अर्थात् ऊपर जो कुछ बतलाया वह इसके पहले का हाल है) ॥४८॥'ब्रह्मा-

  • मूलमाया पंचभूतिक है; परंतु ये पंचभूत मूलमाया में सूक्ष्मरूप से हैं। इसके बाद

गुणसायो त्रिगुण, सूक्ष्मभूतं और स्पष्ट या स्थूलभूत (जिन्हें श्रीसमर्थने तत्व कहा है.) क्रमशः निर्माण हुंए । परन्तु ऊपर. जो एक एक भूत में पंचभूतों का.मिश्रण बतलाया वह सूक्ष्म भूतों का है, तवं यह ब्रह्मांड निर्माण न हुआ था। है