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समास ४] सूक्ष्म पंचमहाभूत। सूक्ष्म तत्व ही आगे चल कर जड़त्व को प्राप्त होते हैं ॥ ५६ ॥ वे पंच- महाभूत, जो पहले सूलमाया में अध्यक्त थे, सृष्टि-रचना में व्यक्त हो जाते ॥ ५७ ॥ मूलमाया का लक्षण भी पंचभौतिक ही है-उसकी पहचान सूक्ष्म दृष्टि से करना चाहिए ॥ ५८ ॥ आकाश और वायु के बिना सूल: माया में स्फूर्ति और इच्छा कहां से आ सकती है ? ( अतएव प्रकाश और वायु मूलमाचा में हैं.) तथा उसमें इच्छाशक्ति होना तेज का लक्षण हुश्रा ॥ ५६ ॥ इसके सिवाय, उसमें जो मृदुता है वही जल हैं और जड़ता पृथ्वी का लक्षण है; इस प्रकार पांचो महाभूत मूलमाया में होते हैं, अतएव - मूलमाया पंचभौतिक ही ठहरी ॥ ६०॥ इतना ही नहीं; बल्कि एक एक भूत में पांचो पाँच भूत रहते हैं । यह वात सूक्ष्म दृष्टि से मालूम हो सकती है ॥ ६१ ॥ आगे चल कर वे स्थूलरूप में आते हैं, तब भी सब आपस में मिले हो रहते हैं । एवं, यह सब पंचभूतात्मकं माया फैली हुई है ॥ ६२ ॥ आदि की मूलमाया में; भूमंडल की अविद्या (माया) में, स्वर्ग मृत्यु पाताल में, पांच ही भूत हैं ॥ ६३ ।। स्वर्गे मृत्यौ च पाताले यत्किंचित्सचराचरं । सर्व तत्पांचभौतिक्यं षष्ठं किंचिन्न दृश्यते ॥ १ ॥ श्रांदि अन्त में (और सवे मैं ) सत्यस्वरूप है, और बीच में पंचमहा- भूत वर्तते है और यही पंचभूतात्मक मूलमाया का स्वरूप है ॥ ६४ii यहां एक आशंका उठती है कि पंचभूत तो तमोगुण से हुए हैं और मूलमायाँ गुणों से परे है। अतएव वह पंचभूतात्मक कैसे हो सकती है ? अस्तु । इस शंका का समाधान अंगले समास में किया गया चौथा समास-सूक्ष्म पंचमहाभूत । ।। श्रीराम ॥ अन्न स्पष्टरूप से पिछली आशंका का समाधान किया जायगा, इ. निए श्रोता लोग पल भर वृत्ति ठीक करें ॥ १..पहले, ब्रह्म में सचन्तामा हुई और फिर, उससे गुणमाया हुई, इसीलिए उसे गुणक्षोभिणी कहते हैं ॥२॥ उससे फिर.सत्व-रज-तम नामक तीन गुण हुए। इसके बाद तमोगुण से पंचमहाभूत बने ॥ ३ ॥ इस प्रकार भूत उद्भूत हुए और