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दासबोध। [ दशक ८ श्वर, के द्वारा ही यह सृष्टि विस्तृत हुई है-वह ईश्वर ही सर्वकर्ता है ॥ १२ ॥ उसके अनन्त नाम हैं । उसने अनन्त शक्तियां निर्माण की हैं। वही मूलपुरुष है ॥१३ ॥ उस मूलपुरुप की पहचान, वह स्वयं मूलमाया हो है । अतएव, सब कर्तृत्व उसी में आता है ॥ १४ ॥ कार्यकारणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते । पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ।। परन्तु यह खुल्लम-खुल्ला नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इससे (अर्थात् मूलपुरुष को द्वैत को उपमा दे देने से ) बोलना, चालना, श्रवण, मनन, आदि, ब्रह्मप्राप्ति के उपाय ही, नष्ट होते हैं, यो तो देखने में क्या सच है! ॥ १५ ॥ यह तो सभी मानते हैं कि, परमात्मा से सब हुआ है; पर उस परमात्मा को तो पहचानना चाहिए ॥ १६ ॥ सिद्धों का निरूपण साधकों के काम का नहीं है, क्योंकि उनका अन्तःकरण पक्व नहीं होता ॥ १७ ॥ अविद्या के कारण (पिंडरूप उपाधि धारण करनेवाले को) जीव कहते हैं और माया के कारण (ब्रह्मांड की उपाधि धारण करनेवाले को). शिव कहते हैं और मूलमाया के गुण से परमेश्वर ब्रह्म कहलाता है॥१८॥ श्रतएव, अनन्त शचियों का धारण करनेवाली मूलमाया ही है । इसका अर्थ अनुभवी पुरुष ही जान सकते हैं ॥ १६ ॥ भूलसाया ही मूलपुरुष है-वहीं सब का ईश्वर है । अनन्त नामी जगदीश उसीको कहते हैं ॥ २०१] यह सस्पूर्ण विस्तृत माया बिलकुल मिथ्या है । इसका मर्म बहुत कम लोग जानते हैं ॥ २१ ॥ वास्तव में ये बाते अनिर्वाच्य हैं; परन्तु हम यहां पर बतला रहे है ! यो तो स्वानुभव से ही इन्हें जानना चाहिए। ये बातें संतसंग के विना, कदापि नहीं समझ में आतीं ॥ २२ ॥ अस्तु । साधकों को यह शंका हो सकती है कि, माया ही सूलपुरुष कैसे है ? अच्छा, यदि नहीं है तो फिर अनन्तनामी जगदीश किसे कहेंगे? ॥ २३ ॥ क्योंकि नाम और रूप तो माया ही तक हैं; अतएव उपर्युक्त कथन में कोई सन्देह की बात नहीं ॥ २४ ॥ अस्तु; पिछली यह आशंका रही जाती है कि, निराकार में भूलमाया कैसे हुई ! अच्छा सुनिये:-॥ २५ ॥ दृष्टिबन्धन (नजरबन्दी) के खेल की तरह यह सब माया मिथ्या है; परन्तु, अब यह बतलाते हैं कि, 'वह नजरबन्दी का खेल-माया का कौतुक होता किस प्रकार है ॥ २६ ॥ निश्चल अाकाश में जिस प्रकार