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समास -] श्रवण का निश्चय । कारण श्रवण करना ही चाहिए ॥ ४६॥ अब अगले समास में यह बत- लावेंगे कि श्रवण का नियम क्या है और कैसे अन्यों का श्रवण करना चाहिए ।। ५०11 नववाँ समास-श्रवण का निश्चय । ॥ श्रीराम ॥ अब यह बतलाते हैं कि श्रवण किस तरह करना चाहिए। श्रोता लोगों को एकाग्रचित्त हो जाना चाहिए ॥१॥ कोई वक्तृता ऐसी होती है कि जिसके सुनने से मिली-मिलाई शान्ति अकस्मात् भंग हो जाती है और निश्चय डिग जाता है ॥२॥ उस मायिक और निश्चय-शून्य वक्तृता को अवश्य ही त्यागना चाहिए ॥३॥ यदि एक अन्य के सुनने से कुछ निश्चय प्राप्त हुआ और दूसरे अन्य ने उस निश्चय को उड़ा दिया, तो उससे जन्म भर संशय ही बढ़ता जाता है ॥ ४॥ इस लिए, ऐसे ग्रन्थ का श्रवण करना चाहिए कि, जिससे संशय मिट जाय,शंका निवृत्त हो जाय; और, जिसमें अद्वैत तथा परमार्थ का निरूपण किया गया हो ॥५॥ मुमुक्षु पुरुप परमार्थ-मार्ग का ग्रहण करता है और अद्वैत-अन्य से प्रेम रखता है ॥ ६ ॥ जिसने संसार की आसक्ति छोड़ दी है, और मोक्ष की साधना करता है, उसे अद्वैत-शास्त्र का विवेक करना चाहिए ॥७॥ अद्वैत-प्रिय श्रोता को द्वैत-निरूपण सुनाने से उसका चित्त क्षुब्ध हो उठता है ॥ ८ ॥ यदि मन के अनुसार निरूपण सुनने को मिल जाता है तो वड़ा श्रानन्द होता है; अन्यथा जी ऊब जाता है ॥॥ जिसकी जो उपासना है, उसीके अनुसार निरूपण में, उसकी 'प्रीति' होती है; उसके प्रतिकूल, अन्य निरूपण, उसे प्रशस्त नहीं जान पड़ता ॥ १०॥ 'प्रीति' का लक्षण यह है कि, जैसे पानी स्वयं ही अपने मार्ग से (ढास्तू जगह की ओर) चल देता है उसी प्रकार प्रीति भी, हृदय से,अनायास ही (अपने प्रिय विषय की ओर),चल देती है ॥११॥ आत्मज्ञानी पुरुप को वही ग्रन्थ पसन्द आता है जिसमें सारासार का विचार हो । अन्य वात उसे अच्छी ही नहीं लगती ॥ १२॥ जिसकी कुल-देवता भगवती है उसके लिए सप्तशती. (दुर्गा की पोथी) चाहिए । अन्य देवताओं की स्तुति उसके लिए सर्वथा निरुपयोगी है ॥ १३ ॥ अनन्तव्रत करनेवाले (सकाम पुरुष) के लिए भगवद्गीता (निष्काम-निरूपण ) की आवश्यकता नहीं